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फिर भी गोरी प्यासी है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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जाय बसे परदेश सजनवाँ,
मन में भरी उदासी है।
बाहर बरस रहा है पानी,
फिर भी गोरी प्यासी है।

बारिश के पानी में भीगा,
घर का चप्पा-चप्पा।
बैठ झरोखा रिमझिम देखे,
लगे सजन का धप्पा।

धरती आँगन भीग गए सब,
फिर भी मन है सूखा।
भीग गए गलियारे उपवन,
अंतर्मन है भूखा।

बिना तुम्हारे सावन आया,
मन में कोई हुलास नहीं।
सखियाँ सब साजन सँग झूलें,
मेरे मन में आस नहीं।

ओ बेदर्दी बालम तुमको,
याद नहीं आती है।
प्यार भरी ऋतु में भी निंदिया,
पास नहीं आती है।

रिमझिम बारिश आग लगाती,
बढ़ती मन की प्यास है।
हो सामीप्य सजन जब तेरा,
दिल में बड़े उजास है।

विरह वेदना से पीड़ित मन,
और अधिक अकुलाता।
डूब प्यार में जब अनंग ही,
कामुक बाण चलाता।

मोर पपीहा नहीं सुहाते,
कोयल विरह बढ़ाती।
है चकोर सी विरह वेदना,
ऊँचे शिखर चढ़ाती।

रस से भरी फुहार बरसती,
तुम्हें याद ना आती।
सावन आया तुम न आए,
धीर धरे न छाती।

हैं दिन-रात सजन बिन सूने,
तड़पाता है सावन।
आओ सजन एक हो जाएं,
मौसम है मनभावन।

गले हार बाहों के डालो,
प्यार घटा छाएगी।
मेरे सूखे मन पर मादक,
बारिश हो जाएगी।

हृदय हीन, निष्ठुर, बेदर्दी,
बुद्धू सजन हमारे।
प्यार भरी जीवन नैया के,
तुम ही खेवन हारे।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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