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संवेदन संदूक

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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हुई रिक्त इंसान की, संवेदन संदूक।
हर हमीद ने हाथ अब, थाम रखी बंदूक।।१

उर में रखे सँभालकर, नफरत वाले बीज।
तभी परस्पर खून से, तर हो रही कमीज।।२

भाईचारे की नसें, काट रहे हम रोज।
समरसता उन्माद में, कौन सका है खोज।।३

अलगू जुम्मन नित्य ही, करते वाद-विवाद।
अब जख्मी सद्भाव से, रिसने लगा मवाद।।४

जहर फसल पर सींचकर, किया प्रदूषित खेत।
बचा न कोई गीत अब, गाये हम समवेत।।५

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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