Sunday, November 24राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

आत्मीय बंधन सुख या सूख

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
********************

शाख का टूटा पत्ता भी सूख जाता है।
रिश्ता आत्मीय होने से सुख पाता है।

मानव वनस्पति दोनों में है जान बसी
बंधन ही है रिश्तों की जड़ खुशी हंसी

व्यवहार प्रकृति जल हवा खाद खुशी
उन कमियों ने जीवन लीला ही डसी

संग होने से सोने पर सुहागा होता है।
अहंकार वश में कोई अभागा रोता है।

शाख का टूटा पत्ता सूख ही जाता है।
रिश्ता आत्मीय होने से सुख पाता है।

संघर्ष चुनौती सामना जीवन किस्सा
निज नसीब में जितना लिखा हिस्सा

पर बन जाते हैं मील के जैसे पत्थर
स्मृति धरोहर भविष्य के बनते तत्पर

समय समय पर दुर्भाव अखरता है
तंज रंज दोनों रिश्तों को परखता है

शाख का टूटा पत्ता सूख ही जाता है
रिश्ता आत्मीय होने से सुख पाता है

सिर्फ लालन पालन कैसा पूरा फर्ज
प्यार दुलार दवा खाद सुधारता मर्ज

बिन सुराख के बंसी कभी नहीं गाए
पर बंसी सुराख संग धुन राग बजाए

सुख दुख सफर का हमराज बनता है
मधुर एहसास मार्ग से रिश्ता पलता है

शाख का टूटा पत्ता सूख ही जाता है
रिश्ता आत्मीय होने से सुख पाता है

प्रकृति छटा की वजह बनी हरियाली
सिंचित कर्म धर्म नीयत से खुशहाली

उजाला न होने से अंधेरा शान बताए
गूंगा होने पर भी अच्छे संदेश जताए

वाणी चातुर्य सुंदर माहौल बनाता है
कटुता कभी कमल नहीं खिलाता है

शाख का टूटा पत्ता सूख ही जाता है
रिश्ता आत्मीय होने से सुख पाता है।

मीठे ओछे छोटे बड़े बोल हैं व्यापक
घोर चुप्पी वाला रिश्ता होता भ्रामक

मौसम अनुकूल पौधों की सेवा करते
प्रतिकूल हवा में रिश्ते किनारा करते

खरा सोना तो पूरा मूल्य चुकाता है।
अंधी आंधी से चमन नाश कराता है।

शाख का टूटा पत्ता सूख ही जाता है।
रिश्ता आत्मीय होने से सुख पाता है।

एक पौधा भी पुत्र मानकर तुम रोपो
बरसों सेवा रक्षा भाव कर्म भी सौंपो

रोपित बीज सदा दे जाते हजारों फल
रिश्ता चाहत मांगे सुकून भरे दो पल

हैसियत साहस ही ’विजय’ सहारा है।
सेवाकर्म लेखन का फलित इशारा है।

शाख का टूटा पत्ता सूख ही जाता है।
रिश्ता आत्मीय होने से सुख पाता है।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *