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आगे संगवारी हरेली तिहार

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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(छत्तीसगढ़ी कविता)

मनाबो संगी हरेली तिहार,
धरती माई ह देवत उपहार।

बारह मास मॅं हरेक परब,
हमर संस्कृति हमु ला गरब।
चलो मनाथन पहली तिहार,
धरती माई ह देवत उपहार..

अन्न उपजइया गंवइया किसान,
भूंईया के हरे इही भगवान।
हरियर दिखत हे खेत-खार,
धरती माई ह देवत उपहार..

गरुवा-गाय बर बनगे दवा,
रोग-राई भगाय बर मांगे दुआ।
घर के डरोठी मॅं खोंचत डार,
धरती माई ह देवत उपहार..

रुचमुच रुचमुच बाजत हे गेड़ी,
सुग्घर दिखत हे संकरी बेड़ी।
रोटी-पीठा महकत हे घर दुआर,
धरती माई ह देवत उपहार..

रापा, कुदारी, बसुला, बिंधना,
धोवा गे नागर सजगे गना।
रहेर हरियागे दिखत मेड़-पार,
धरती माई ह देवत उपहार..

पेड़ लगाबो चलो जस कमाबो,
मिल-जुल के हरेली मनाबो।
छत्तीसगढ़ मैइया होवत श्रृंगार,
धरती माई ह देवत उपहार..

प्रकृति ल सुग्घर सॅंवारना हे,
भारत भूंईया ल सरग बनाना हे।
खुशी मनावत श्रवण तिहार,
इही हरे ग जीवन के उपहार..

मनाबो संगी हरेली तिहार,
धरती माई ह देवत उपहार।

परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
निवासी : भानपुरी, वि.खं. – गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़
कार्यक्षेत्र : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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