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जाने क्या बात है

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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हर गुफ्तगू कही अनकही में निश्चित कोई जात है,
दिल बेचारा हलाकान हो सोचे, जाने क्या बात है।

इर्द गिर्द चक्रव्यूह माहौल छिपी उलझन तो मात है,
हर व्यूह रचना तोड़ बाहर आना, जाने क्या बात है।

नेक सलाह काम परिणाम में अक्सर कोई हाथ है,
खुद की दम से नेक काज सधे, जाने क्या बात है।

हर वक्त जड़ तना फलती फूलती शाख की पात है,
हवा खाद पानी लबालब हमेशा, जाने क्या बात है।

गुजरते जीवन के धुंधलके में छिपी बैठी तो घात है,
निडर एकाकी जीवन का सफर, जाने क्या बात है।

दिन महीने साल गुजारते जब आया दशक सात है,
पर देखी वही मशक्कत जुस्तजू, जाने क्या बात है।

सुना छप्पर फाड़ धन मिले यकायक दिन या रात है,
कुआं खोद प्यास बुझे चकाचक जाने क्या बात है।

संघर्ष योद्धा की चुप्पी भली लगती जब मुलाकात है,
चूंकि माना अपने तो अपने होते, जाने क्या बात है।

श्रेष्ठ करम परिणामों में परम रहस्य मौन करामात है,
दांत पेट सिर दर्द व्यथा में मनुज, जाने क्या बात है।

सभाओं में तमाशे की अंगुली से खेलता जज्बात है,
श्रेष्ठता में मोबाइल उंगली नाकाम, जाने क्या बात है

बीमार को दो आषाढ़ बला नहीं बल का पारिजात है,
डगर डगर चलने में सुकून ’विजय’ जाने क्या बात है।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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