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शंभू

आस्था दीक्षित
 कानपुर (उत्तर प्रदेश)
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कराल तन पे जो बसा,
कपाट पे तो भस्म है।
मृदंग गर्जना करे की,
शंभू के ही अस्म है।
धम- धमा के चल रहे है,
देखो ये धरा हिली।
मिट्टी खिलखिला उठी,
न जाने क्या खुशी मिली।
नाचता ये तन बदन,
गगन हुआ मगन मगन।
कब बिजलियां चमक उठे,
सब आपका ही आकलन।
डमरू डम डमा रहा,
त्रिशूल का अलख जगा।
तुमको बस है पूजना,
है कौन क्या? कोई सगा।
चंद्रमा तो सज रहा,
और बज्र सी भुजाएं हैं
प्रचंडता को पा रही,
ये किसकी अस्मिताएं है
हर बार हम प्रणाम कर के,
शंभू तुमको देखते।
ललक भरा है ये गगन,
ये धार हाथ जोड़ते।
ये वाद पात नाचते,
की द्वार है शिवाय के।
ये बेल पत्तियां हंसी,
जो सजी है पांव में।
विश्व की प्रजातियों के,
एक तुम ही नाथ हो।
तुमको ही तो रट रही,
दिखों प्रभु जो साथ हो।
मैं डर रही, तड़प रही,
दिखो प्रभु, कभी दिखों।
जय जय शंभू कह के,
मैं रगड़ रही विभूति को।
पूजते है मन से तुमको,
और क्या जतन करे।
जय हो भोले बाबा की,
अब अंग अंग ये कहे।

परिचय –  आस्था दीक्षित
पिता – संजीव कुमार दीक्षित
निवासी – कानपुर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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