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वतन के रिश्ते

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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बरसात की तेज बौछारें भी दिखती
चकाचक चांदी जैसी धूप भी चमके।

मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में
नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके।

छोटे बड़े रास्ते राजमार्ग पगडंडी तक

कुंदरा कुटिया घर कोठी महलों तक

छात्र किसान व्यापारी पंडित विद्वान
सब के हृदय ज्ञान भंडार भरा महान

सदा बिना भूख परोसे आतुर जमके।
पेट से भूखा व्यक्ति कभी न खटके।

मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में
नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके।

अपने सर्वश्रेष्ठ दिखाने में मिले घात
कोच शिक्षक प्रशिक्षु हृदय की बात

हर क्षेत्र विभाग सुना ज्ञान मत बांट
अति होशियारी दिखाते ही पड़े डांट

कुछ प्रतिभा दिखने से पहले खिसके
होनी अनहोनी के फेरों में पढ़ पढ़के।

मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में
नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके।

टेलीपैथी गुण कहीं पनपता जाता
जितना भी कर जाओ सब भाता।

कभी विवशता में अनचाहा हो जाए
मील के पत्थर पर लिखना बतलाए

घनचक्कर में सच्चे सीधे बन बनके
मिले तेल कोल्हू बैल से घंटी बजके।

मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में
नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके।

नजरिया व्यवहार ढंग अब बचकाना
मुलाकात का कभी रहा जो नजराना

संपत्ति बल चलन से बड़ा कहलाना
कुछ आदर्शों का भरता बहुत हर्जाना

मेहनत संग पतवार चली बच बचके
जमाने की ठसन देख माथा खिसके।

मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में
नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके।

स्याही कलम से बने वेद पुरातन ग्रंथ
अब कलम अर्थ भेद में घिर गए पंथ

कस्बे गांव से देखे होनहार निकलते
बड़े शहर से ओछे बांके आका बनते

जब वतन की मिट्टी से ही रिश्ते महके
अमर शहीदों को नमन सिर धर धरके

मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में
नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके।

बरसात की तेज बौछारें भी दिखती
चकाचक चांदी जैसी धूप भी चमके।

मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में
नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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