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गुरूब्रम्हपद को नमन

गगन खरे क्षितिज
कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश)
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अमन चैन शांति का जब पाठ पढ़ाते हैं,
हमारी संस्कृति सभ्यता
संस्कारों परम्पराओं का भारतीयता लिए
मातृभाषा शब्दों में उभर कर
ब्रह्मा विष्णु महेश का सार्थक स्वरूप
हर भारतीयों में नज़र आती हैं।

गुरू की महिमा गुरू ही जाने,
गुरु गोविंद दोनों खड़े
काके लागूं पाय बलिहारी गुरु
आपकी जो गोविंद दियो बताए,
जाने प्रतिभा लक्ष्य साधकर
समर्पित एकलव्य ने परिभाषा
किया गुरूचरणों में,
अमृततुल्य निस्वार्थ अपनी
प्रतिभा से गुरूपद निखार दिया
जनमानस में भारतीयता
लिए नज़र आतीं हैं।

प्रलोभन निस्वार्थ भाव से जो
भारतीयता में मिलती हैं
समर्पण भाव सृष्टिकर्ता
ईश्वर के प्रति एकरूपता
विश्व में कहीं नहीं मिलती
तभी तो भारतीयता
गुरूचरणों में पथप्रदर्शक
बनकर के आ जाती हैं।

सदीयों से जिन्दगी
सुख दुःख का मेला है
महापुरुषों ने हमें बताया हैं,
प्रीत प्यार की गंगा सिखाती
मर्यादा में रहकर बड़ों का
आदर-सत्कार करना
मर्यादा पुरुषोत्तम नारायण
हरि जल थल नभ सौरमंडल में
प्राणीमात्र की जिज्ञासा का
केन्द्र बन गगन गुरूपद की
महिमा सकारात्मकता
भारतीयता मैं नज़र आती हैं।

परिचय :- गगन खरे क्षितिज
निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश
उम्र : ६६वर्ष
शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से
सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४
साहित्य में कदम : २०१४ से भारतीय साहित्य परिषद मंहू, मध्य प्रदेश लेखक संघ मंहू इकाई, महफ़िल ए साहित्य कोदरिया मंहू, आर्चना साहित्य संस्थान मंहू, राष्ट्रीय संखी साहित्य परिवार, छत्तीसगढ़ सखी साहित्य परिवार, म. प्र. संखी साहित्य परिवार, राष्ट्रिय हिंदी रक्षक मंच आदि समूह से समय पर जुड़े है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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