डॉ. निरुपमा नागर
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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आज लंबे अर्से के बाद पोस्टमेन की आवाज सुनकर, और उसके हाथ में लिफाफा देख कर दिल खुशी से नाच उठा। क्योंकि आजकल मोबाइल के जमाने में डाक से चिट्ठी कहाँ आती है? जरुर किसी पुराने परिचित ने भेजी होगी।
झटपट लिफाफा ले कर खोला तो देखा बचपन की सहेली अपूर्वा की चिट्ठी थी। चिट्ठी खोलते हुए हाथ कांपने लगे क्योंकि कुछ दिनों पहले ही उसका बेटा अचल, जो सेना में ऊंचे ओहदे पर था, काश्मीर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में मारा गया था। तब फोन पर ही मैं उसे दिलासा दे पाई थी। चाहकर भी मिलने नहीं जा पाई थी। उसका पत्र हाथ में लेकर आँखें गीली ह़ो गयी। लिखा था, मन की कुछ बातें फोन पर नहीं हो पाती हैं इसलिए आज तुझे चिट्ठी लिख रही हूँ।
विभा, तुझे क्या बताऊँ, अचल के जाने के बाद कैसे थोड़ा संभल पाई थी कि आज हमारे यहाँ के महपौर स्वयं घर आए। वे इस बार गणतंत्र दिवस पर मुझसे झंडा्ंवंदन करवाना चाहते है। साथ ही मेरा अभिनंदन समारोह भी रख रहे हैं। मैं शहीद वीर पुत्र की माँ हूँ ना ! मैं अपने आप को इसके लिए तैयार नहीं कर पा रही हूं।
ये आतंकवाद और गणतंत्र दिवस !
शोक और हर्ष दोनों साथ कैसे मनाऊँ? मेरा बेटा जिस तिरंगे में लिपटा हुआ मुझे अंतिम बार मिला था, उस तिरंगे में मुझे अचल की ही सूरत दिखाई देगी। अब ये सम्मान और सम्मान राशि ले कर क्या करुंगी। मेरा अचल तो मुझे नहीं मिलेगा ना। मैं यह नह़ी कर पाउगीं। मैं पढ़कर किंकर्तव्य विमूढ़ हो गई। सिर पर हाथ रख कर वहीं बैठ गयी।
कुछ सोचने के बाद उठी और अपूर्वा को फोन लगाया। औपचारिक बातों के बाद मैंने उसे बताया कि मुझे उसका पत्र अभी-अभी मिला है।
उसके सुबकने की आवाज मुझे साफ सुनाई दे रही थी। उसे ढाढस बंधाते हुए मैंने कहा- तू इस कार्यक्रम में जरुर जाना। अचल की आत्मा यह देखकर कितनी प्रसन्न होगी। चाहे तो सम्मान राशि आतंकवादियों के हमले से पीड़ित परिवारों को दे देना। बहुत समझाने के बाद वह मान गयी थी।
आज लगभग दो सप्ताह बाद उसने व्हाट्स ऐप पर एक तस्वीर भेजी जिसमें वह अचल का फोटो हाथ में ले कर तिरंगा लहरा रही है। साथ ही उसने लिखा, “अब मैने अपने आप को समझा लिया है कि तिरंगा अचल का कफन नहीं, अचल की और देश की शान है।”
तेरी सलाह से मैं यह पुण्य कार्य कर पाई हूँ।।
पढ़कर मैं बहुत खुश ह़ो गयी। सोचा, देशभक्त फौजी अफसर की माँ कमजोर कैसे हो सकती है? घाव ताजा होने के कारण अपूर्वा का साहस कुछ समय के लिए खो गया था, मेरे शब्दों ने उसे ढूँढने में मदद की है बस। और आज मैं उससे इस खुशी को बाँटने के लिए भोपाल जाने के लिए निकल, पड़ी।
परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर
निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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