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आराधना की ऋतु

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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बारिश के पानी से देखो।
भर गये नदी नाले तलाब।
सूखी उखड़ी भूमि भी अब
हो गई है गीली-गीली।
वृक्षों पर भी देखो अब
नये हरे पत्ते आने लगे।
चारो तरफ पानी-पानी अब
जमा हो गया बारिश का।।

रास्ते पहाड़ और टीले आदि
शीतल और नम होने लगे।
बारिस की गिरती बूंदे से
पेड़ फूल पत्ते खिल उठे।
रुका हुआ पानी भी देखो
वह भी अब बहने लगा।
पशु पक्षी जीव जंतु आदि
उछल कूद करने लगे।।

दूर दराज गये पक्षी भी
अब घरों को लौटने लगे।
छोड़ छाड़कर अपने कामों को
प्रभु आराधाना अब करने लगे।
शरीर की शिथिलता भी अब
मानव का साथ देने लगी।
व्रत नियम संयम आदि लेकर
ध्यान प्रभु का करने लगे।।

चार माह का ये चौमासा
साधु संत आदि को भाता है।
स्थिर एक जगह रहकर के
खुद का और जन कल्याण करते है।
जियो और जीने दो के लिए
एक स्थान को ही चुनते है।
और ये सब हम और आप भी
वर्षा ऋतु में ही कर करते है।।

वर्षा ऋतु में आते है
सबसे ज्यादा तीज त्यौहार।
प्रभुजी भी आराम है करते
इसी पावन ऋतु में जो।
तभी तो भक्तो को मिल जाती
पूजा अर्चना उनकी करने।
और उन्हें खुश करके वो
मनवांछित फल पा जाते।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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