
रुचिता नीमा
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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भीग रही है धरती सारी
झूम रहा है नील गगन
हर तरफ है छटा निराली
नाच रहा मयूर हो मगनतेरे करम की बारिश में
तर बतर है सारा चमन
मुझ पर भी रहम कर मालिक
धोकर मेरे अंतर का अहममुझको भी कर तू निर्मल
बहाकर मेरे सारे अवगुण
कि तुझमें ही रम जाऊ मैं
भूलकर सारे रंज ओ गमकर दे तेरे करम की बारिश
बाहर भी और भीतर भी
तर हो जाए और तर जाएं
अबकी बारिश में फिर हम।।
परिचय :- रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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