Friday, November 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

ये फुनवा मुआ

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
********************

यशोदा अपने कमरे में लेटी लेटी सोच रही है…एक ज़माना था जब घर में कितनी चहल पहल रहती थी। अम्मा जी भी सुबह जल्दी उठ जाती थी। दोनों सास बहू मिलकर पूरे घर को बुहार लेती थी। अम्मा का स्नान ध्यान प्रारम्भ हो जाता था। पूरा वातावरण अगरबत्ती की महक से सुवासित हो जाता था। वह स्वयं भी नहाकर चाय लिए पूजाघर में अम्मा जी के साथ जा बैठती। मुँह अंधेरे घूमने निकले पतिदेव प्रशांत भी पिता के साथ अख़बार में खो जाते। चाय की चुस्कियों के साथ यशोदा सब्जियों की सफ़ाई पर हाथ चलाती और दिनभर की योजनाएँ बनती रहती। दिन के खाने के टिफ़िन बन जाते किन्तु नाश्ता सब साथ साथ बतियाते हुए करते।
यशोदा वर्तमान में आकर मायूस हो जाती है। घर में तो जैसे मरघटी शांति ने डेरा जमा लिया है। एकमात्र शेखर जी ही हैं जो अपनी ऐनक चढ़ाए अख़बार में मशगूल रहते हैं। हाँ, अपनी शाम वे पत्नी यशोदा के साथ सैर में बिताते हैं। बिन्नी मुन्नू तो बस सवेरे से टीवी के सामने। नाश्ता दूध वे कार्टून्स के साथ ही करते हैं। पोता बहू कियारा को खूब समझाया भी, “अरे देखो, ऐसे इन बच्चों की आदतें बिगड़ जाएगी। लाओ मैं अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाकर जो तुम चाहो सब खिला दूँगी।”
लेकिन जवाब मिलता, “अरे दादी ! इन्हें तैयार करना है। फ़िर मुझे भी ऑफ़िस जाना है।” और हाथ में मोबाइल व कान में इयरफ़ोन लगाए बहुरानी की रात आठ बजे तक छुट्टी।
उधर पोता केशव मोटा सा चश्मा लगाए लेपटॉप बैग टाँगे मुँह में सैंडविच ठूसे जैसे ही कार स्टार्ट करता, मोबाइल घनघना उठता है। उधर शेखर जी हाथ में दवाई का पर्चा लिए सरपट भागती कार को देखते ही रह जाते हैं।
बेटा प्रशांत पूजाघर से माला फेरते हुए आकर कहता है, “अरे बाबूजी ! मैं ला दूँगा आपकी दवाई। ये बच्चे तो इस डिजिटल दुनिया में इतना खो गए हैं कि रिश्ते निभाना ही भूल गए हैं। ये देखिए, आपकी पोती राधा अब उठकर आ रही है। रात एक बजे तक तो फोन ही देखती रहती है। शादी के बाद तो हमारी नाक कटवा कर ही रहेगी। और छोटा वाला कान्हा दिनभर गेम खेलने में लगा रहता है। उसके दोस्त का सुना था ना कि गेम में हार गया तो माँ के खाते से दस हजार निकाल लिए। अरे कई तो आत्महत्या ही कर लेते हैं। भगवान ही मालिक हैं। ”
यशोदा जी कमरे से बाहर आकर कहती है, “बेटा प्रशांत उसे राधा मत कह। वह तो रायना है। कल तो उसने हद ही कर दी, अपनी माँ पर ही बरस पड़ी। इस नासमिटे मोबाइल ने बच्चों को बिगाड़ कर धूल कर दिया है। और वो क्या नाम से क्यारा…अरे कियारा बहू ने कल उस गुगल्या में झाँक झाँककर ऐसी सब्जी बनाई कि महीने भर का मसाला खलास। किचन की सफ़ाई करे बेचारी सासू माँ। ये नाम भी ना, मैं तो बस तुलसी क्यारा जानूँ। हे भगवान ! अब तो अकल बख्शो इन बच्चों को।”
शेखर कहते है, “चलिए, हम चारों तो साथ बैठकर भोजन करते हैं। और हाँ, आज से कुछ नियम बनाते हैं कि जब तक सब घर में रहेंगे टीवी, फ़ोन्स वगैरह बन्द रखेंगे।”
“यशोदा भी अपनी भड़ास निकालने में पीछे नहीं रहती, “ये फुनवा ही मुआ, माता-पिता, बन्धु, सखा सब कुछ ही बन गया है।”

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *