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कोई तो चीत्कार सुने उसकी

अशोक पटेल “आशु”
धमतरी (छत्तीसगढ़)
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भरी बरसात के मौसम में भी
नदियाँ वीरान सी लगती है
कोई तो चीत्कार सुने उसकी
वह खाली-खाली लगती है।

सारी नदियाँ दूर-दूर तलक
बंजर जमीन सी लगती है
बन गई शहर का कूड़ादान
इसे देख नदियाँ सिहरती है।

आज नदियाँ मैली लगती है
नाली सी वह काली हो गई
गंदे पानी से हुई वह कुत्सित
मीठे जल से वंचित हो गई।

सारे घाटों का बंदरबाट हुआ
सुना-सुना पनघट घाट हुआ
सब जीव-जंतु पानी को तरसे
पूरी नदियाँ श्मशान घाट हुआ।

यह नदियाँ हमेशा चीख रहीं
कोई तो उसकी पुकार सुनो
गङ्गा की तरह यह भी लहराए
कोई तो उसकी गुहार सुनो।

परिचय :अशोक पटेल “आशु”
निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़)
सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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