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मोबाइल अवसाद

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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मोबाइल जीवन बना, आया बहुत करीब।
निज सामाजिक खुशी का, सबका छिना नसीब।।

डेसमंड टुटू का कथन, मिशन करे बदलाव।
जमीन बाइबल बदले, लाया था ठहराव।।

प्रार्थना के नाम पर, करना पड़ा विश्वास।
आदत चाय ब्रिटिश की, लक्षण थे कुछ खास।।

सोशल मीडिया भी यही, लाए हमें सौगात।
मुट्ठी में संसार हुआ, खोए दूर जज्बात।।

महत्ता मीडिया दिवस की, हो चुकी शुरुआत।
सभी कुछ मोबाइल है, सब पिता बच्चे मात।।

जिम्मा समाज कुटुंब का, बहुत हुआ है लोप।
चुभन कसक संबंध की, बात बात पर कोप।।

उच्च मध्यम गरीब वर्ग, प्रबल हुआ जुड़ाव।
रिश्ता है मोबाइल पर, मिलते बहुत सुझाव।।

निज दुनिया व्यस्त सभी, दोस्त बने हजार।
दो और दो भूल गए, दो दूनी हैं चार।

फोटोजीवी बन चुके, दिवस रैन प्रमाण।
दिल मोबाइल साथ ही, दोनों बसते प्राण।।

प्रगतिपथ का मंत्र है, मत पाओ अवसाद।
संतुष्टि बल संग रहे, रखता परे विवाद।।

आदत पहुंची चरम पर, मोबाइल उपयोग।
अब नैतिकता ह्रास से, सक्रियता का रोग।।

अति गुलामी दूर करो, बढ़ गया भ्रमजाल।
मोबाइल उपभोग से, हालत है विकराल।।

शिशु रूदन होता रहे, मोबाइल है पास।
मां रहती व्यस्त सदा, दुनिया का आभास।।

अकेले आना जग में, जाने की भी रीति।
विजय सोच से गर जिएं, सुंदरतम है नीति।।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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