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हमारी संस्कृति हमारी विरासत

शशि चन्दन
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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धरा से अम्बर तलक विस्तृत है,
हमारी “भारतीय संस्कृति”,
देती है जो हर जड़ चेतना को,
सारगर्भित जीवन की स्वीकृति।।
है संगम यहाँ विविधता का,
पर लेष मात्र भी नहीं है कोई विकृति,
संविधान ने दिए हैं कई अधिकार,
जन जन में एकता ही एक मात्र संतुष्टि।।

यहाँ बच्चा बच्चा राम है,
और हर एक नारी में माँ सीता है,
यहाँ हर प्राणी को मिलती
माँ के आँचल में प्रेम की गीता है।।

बहती नदियों की धारा में
आस्था और विश्वास के दीपक जलते हैं,
कि मल मल धोये कितना ही तन को,
मगर श्रेष्ठ कर्मों से ही पाप धुलते हैं।।

इतिहास बड़ा पुराना है शिलालेखों में
कई राज़ हमराज से मिलते हैं,
मार्ग मिले चार ईश वंदन के,
मगर एक ही मंजिल पर जाकर रुकते हैं।।

रक्त-रक्त में मिलता एक दिन,
यहाँ ना कोई जात धर्म का ज्ञाता है,
“रहीमन धागा प्रेम का है”,
दिलों से रिश्ते निभाना हमें आता है।।
“अतिथि देवो भव” हमारी
संस्कृति की अनमोल धरोहर है,
यहाँ मान-सम्मान, सत्कार, खान-पान
और बोली की मिठास का भंडार है।।

यहाँ कवि चंद्रवरदायी और
पन्ना धाय जैसे समर्पण कर्ता हैं,
चेतक, बादल, पवन जैसे
घोड़े भी देशप्रेम और स्वामी भर्ता हैं।।

यहाँ घूँघट और हिजाब में
नारी के मन सौन्दर्य कब खोता है,
यहाँ नारी मान मर्यादा में लिपटी,
सरल सौम्य,देवी रूप में पूजती है।।
पुरुषों से कम नहीं नारी, कंधे से कन्धा
मिलाकर जिम्मेदारियाँ ढोती है
अस्मिता का होता हनन,
लक्ष्मी दुर्गा रूप धर दुश्मनों से लड़ती है,
वक़्त आने पर सीने पर रख
पैर काली शिव को भी ललकारती है।।

हरी भरी लहरातीं फसलें,
सुंदरता में चार चाँद लगाती हैं,
पीली-पीली सरसों महकते खेत
खलियान अरुणी की गुरु भक्ति कहते है,
सौंधी-सौंधी माटी की महक,
जीवन के खेल तमाशे दिखलाती है,
कि कंचे से लेकर भाला फेंकने तक,
अद्वितीय खेल माटी से मिलते हैं।।

मधुर गीतों से सजी महफ़िलें
मिलती जब नृत्य से नृटराज सजते हैं,
कालकृतियों, में सजीव चलचित्र में
पूरे इतिहास का वर्णन मिलता है.,
देखकर हस्त रेखा को, गण नक्षत्र,
तारों के छिपे पोल खुलते हैं,
जप, तप, व्रत से कान्हा मधुवन
छोड़ राधिका संग जचते हैं।।

कि हमारी भारतीय संस्कृति
अथाह अनंत गहरा सागर है,
यहाँ सारी नदियाँ आकर मिलती हैं,
और एक रंग में रंग जातीं हैं,
रंग रूप का कोई भेद नहीं,
भाषा विभाषा का कोई तोल नहीं है,
हिमालय सरताज और “हिंदी”
हमारी भारत माँ की बिंदिया है।।

खड़े हैं सीमा पर वीर जवान,
जिनसे है रंगा तिरंगा हमारा है,
इस खाकी से ही घर-घर होली
दिवाली ईद पोंगल क्रिसमस है,
इनसे ही तो भारत माँ की मांग
सिंदूरी और गोदी में सुरक्षित लाल हैं,
कि इंकलाब जिन्दाबाद और
सरफ़रोशी की तमन्ना से ही
जन गण मन का गान है।।

भारत की संस्कृति से ही द्वारे-द्वारे
खिली अल्पना और तोरण की साज है,
हाथों की मेहंदी, अलता और
सिंदूर दान के प्यारे रीति रिवाज़ हैं,
तुलसी, नीम, एलोवेरा, काली मिर्च,
लोंग, पुदीना दादी माँ के नुक्से हज़ार है,
चरक संहिता वेद मन्त्र,और
चाणक्य नीति सकल मूल आधार हैं,।

कि हमारी भारतीय संस्कृति की
व्याख्या का कोई अंत नहीं है,
ये चंदन सी पावन पवित्र है जिसे
जितना घिसो उतनी महकती है,
यही हमारे देश को अन्य देशों से
अधिक सभ्य और प्रिय बनाती है,
सुनो प्यारों हमें अपनी संस्कृति की
रक्षा के लिए हमेशा प्रयासरत रहना है,
शशि का यही निवेदन है
“हमारी संस्कृति हमारी विरासत”
को हम सबको सहेजना संवरना है।।

परिचय :- शशि चन्दन
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
अपने शब्दों की निर्झर बरखा करने वाली शशि चन्दन एक ग्रहणी का दायित्व निभाते हुए अपने अनछुए अनसुलझे एहसासों को अपनी लेखनी के माध्यम से स्याह रंग कोरे कागज़ पर उतारतीं हैं, जो उन्हें खुशियों के आसमानी रंग देते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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