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ईमानदारी व्यर्थ नहीं जाती

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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यकायक एक अनजाना सा, गुमनाम सा नाम द्रोपदी मुर्मू जी का चर्चा में आ गया है। एन डी ए से राष्ट्र के सर्वोच्च पद के लिए एक आदिवासी महिला का नाम घोषित होता है। सभी उत्सुक हैं जानने के लिए आखिर ये मोहतरमा हैं कौन ? सचमुच द्रोपदी मुर्मू जी एक साधारण महिला ही है। जैसे कभी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद या लालबहादुर शास्त्री देहात परिवेश से आकर अपनी योग्यताओं के कारण देश के उच्च पदों पर आसीन हो गए थे।
द्रोपदी मुर्मू जी का जन्म २० जून १९५८ को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी ग्राम में एक सांथाल परिवार में हुआ था। पिता ने इन्हें गाँव में ही प्राथमिक शिक्षा दिलवाई थी। वे खूब पढ़ना चाहती थी ताकि परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर सके। घर में गरीबी इतनी थी परिवार को शौच के लिए जंगल जाना पड़ता था। उन्होंने स्नातक की शिक्षा भुवनेश्वर में रह कर अर्जित की।
एक ऐसे ही गरीब परिवार में ब्याह दी गई। शिक्षिका की नौकरी करने लगी किन्तु छुड़ा दी गई। वे अपने मायके रायरंगपुर आकर रहने लगी। पहले शिक्षिका बनी फिर सिंचाई विभाग में कनिष्ठ लिपिक के पद पर कार्य किया।
सभी लोगों से मिलना उन्हें अच्छा लगता था। उनकी मिलनसारिता के कारण सन २००० में उन्होंने स्वतन्त्र प्रभार की राज्यमंत्री पद भार सम्भाला। सन २००२ में मत्स्य व पशुपालन विभाग में राज्यमंत्री बनी। सन २००६ में आदिवासी जनजाति मोर्चा ओडिशा की प्रथम अध्यक्षा चुनी गई। २००७ में सर्वश्रेष्ठ विधायक का नीलकंठ पुरस्कार इनके खाते में दर्ज हुआ। २००९ में रायरंगपुर से दुबारा विधायक चुनी गई। इसके बाद एक बार इन्हें हार का भी सामना करना पड़ा।
इसके बाद इन पर पारिवारिक मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। २०१३ में बड़े बेटे ने साथ छोड़ा। फ़िर छोटे बेटे ने और पति श्यामचरण भी स्वर्ग सिधार गए। लगा कि दुनिया ही लुट गई। किंतु जिजीविषा जिंदा थी। और जुट गई समाज कल्याण में।
२०१५ से २०२१ तक झारखंड की नौवें राज्यपाल का पद विभूषित किया। इसतरह अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया।
अपनी सफलता का राज वे स्वयं ही बताती है। एक शिक्षिका रहते हुए वे बहुत लगन व निष्ठा से पढ़ाती थी। उनके विद्यार्थी बगैर कोई कोचिंग या ट्यूशन के उच्च श्रेणी से सफ़ल होते थे। कोई नौकरी नहीं होने पर वे निशुल्क शिक्षादान करती रही है। जो विभूति ऐसी ईमानदारी की प्रतिमूर्ति हो, उन्हें उनके कर्मों का फल अवश्य ही मिलता है। और इन्हीं पुण्यप्रतापों से आज वे भारत की दूसरी राष्ट्रपति के पद पर आसीन होने वाली है।

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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