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बादल ने ली अंगड़ाई

प्रमेशदीप मानिकपुरी
भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़)
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उमड घुमड के उड़ते
बादल ने ली अंगड़ाई।
बरखा बहार आई धरती
मे हरियाली छाई ।।

बुझ गई प्यास
इस धरा धाम की।
अब की बरखा आई
बड़े काम की॥
किसानो के होंठो पर
मुस्कान आई।
उमड़-घुमड़ के उड़ते
बादल ने ली अंगड़ाई I

मधुबन मे जैसे
उमंग हे बहार है।
लग रही अब निस
दिन त्यौहार है।।
प्रकृति ने ओढ़ ली हो
जैसी हरितिम रजाई॥
उमड़-घुमड़ के उड़ते
बादल ने ली अंगड़ाईII

कल-कल करते झरने
करते हो जैसे गान।
प्राकृतिक सुंदरता देश
का हो जैसे मान॥
रज-कण से धरा के
सोंधी सोंधी खुशबु आई।
उमड़- घूमड़ के उड़ते
बादल ने ली अंगड़ाई II

आओ इस मिट्टी की
मादकता में खो जायें।
चंदन तुल्य माटी का
माथे तिलक लगाये॥
आओ बरखा का करें
स्वागत जैसे पहुना आई।
उमड़-घूमड़ के उड़ते
बादल ने ली अंगड़ाईII
बरखा बहार आई,
धरती पर हरियाली छाई॥

परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी
पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी
जन्म : २५/११/१९७८
निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़)
संप्रति : शिक्षक
शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा
रूचि : काव्य लेखन, आलेख लेखन, विभिन्न कार्यक्रम में मंच संचालन, अध्ययन अध्यापन
कार्य स्थल : शासकीय माध्यमिक शाला सांकरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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