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औरत

श्वेता अरोड़ा
शाहदरा (दिल्ली)
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कभी-कभी लगता है कि
औरत बंदिशो मे जकड़ी
एक कैदी है,
इच्छाओं को पूरा करने
की इजाजत मांगती
एक फरियादी है!
रूढियो का दामन थामे
एक बडी आबादी,
गला उसकी इच्छाओ
का घोंटती है,
कभी जब वह अपने
मन की करके,
पुरानी विचारधारा के
नियम तोडती है!
कभी-कभी मन उसका
भी चाहे, सुनना
अपने अंतर्मन को,
अपनी मरजी से जीने का,
अपनी मरजी से ढकने को
अपने तन को!
अलग-अलग है नियम कायदे,
स्त्री-पुरुष के लिए
समाज मे, स्वछंद घूमे
पुरूष हर पल,
स्त्री के लिए अभी भी
समाज मे
लक्ष्मण रेखा बाकी है!
सदा जीती आई
औरो की खातिर,
अपनी इच्छाओ का
गला घोंटने की आदी है!
इच्छाओ को पूरा करने की
इजाजत मांगती
फरियादी है!

परिचय :-  श्‍वेता अरोड़ा
निवासी : शाहदरा दिल्ली
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है


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