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निस्वार्थ कवि

सूरज कुमार
दरभंगा (बिहार)
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शब्दों में जीने वालों की
जीवन होती है अनूठी
मां शारदे खुश रहती है
रहती है मां लक्ष्मी रुठी

शब्दों में वे जीते हैं,
मुंह से कुछ ना कहते हैं
अपनी व्यथा पर चुप रहकर
जनता की व्यथा वे कहते हैं

कभी-कभी अंदर से टूट
शब्दों का साथ छोड़ देते हैं
शब्द बिना वो कैसे जिये
मन ही मन वे कहते हैं

शब्दों से सबकी कहने वाले
अपनी कुछ ना कहते हैं
बस गरीबी में, अभावो में
जीवन भर वे रहते हैं

मां शारदे की आराधना करते
शब्दों की वह साधना करते
बिना धन के लालच की
जीवन की वे कामना करते

परिचय :-सूरज कुमार
निवासी : सराय सत्तार खाँ, लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार)
शिक्षा : १०वीं
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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