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आग

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक
भोपाल (मध्य प्रदेश)

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जवानों में आग की धधक
देश पर मर मिटने की ललक,
योगी के अंतस का अनल
सांसारिकता से अलग
एक दिव्यता का ओजस,
सूर्य के ताप में जल
बन जाएं सब विमल,
अग्नि की लौ में समर्पित
सारे द्वेष और दुःख,
ज्वालादेवी के प्रताप से
जिसका मुख हो दव,
कर्मठता व पवित्रता की द्युति
हो आग से प्रखर,
हवनकुंड की पावक
से वायुमंडल महक,
टुटे हुए दिल की चोटिल अग्नि
सृजनात्मक बन प्रसिद्धि की
और अग्रसर,
उसी आग पर बनी रोटी
करें उदर का शमन,
विवाह में वर-वधू की साक्षी
यह शिव स्वरुप हुताशन,
महाराज हरिश्चंद्र का पुत्र
रोहिताश्व अर्थात,
सूरज की प्रथम किरण
हमें दिखती सर्वप्रथम,
जंगल में दावानल
मानव निर्मित या
कहिये प्राकृतिक,
शिव के अपमान पर
सति का पिता के घर
हवन कुंड में दहन,
अंत में क्षणभंगुर शरीर
समर्पित इसी को वैश्वानर,
हर मानव में है कृशानु
उस ईश्वर को खोजो
निहित है इसी आग में
अलौकिक परमानन्द।

परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा पुरस्कृत हैं। आप “मैं हूं भोपाल’ के खिताब से भी सुशोभित हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा आपको अपनी एक कविता के लिए प्रशंसा-पत्र भी प्राप्त है। वर्तमान में आप एकलव्य युनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य की पीएचडी गाइड नियुक्त है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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