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लगाकर जाम को मुंह से

रामसाय श्रीवास “राम”
किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़)

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लगाकर जाम को मुंह से,
कंही ये भूल मत जाना।
नशे में चूर होकर राह,
घर की भूल मत जाना।।
कोई अपना तुम्हारा, राह में,
पलकें बिछा कर के।
खड़ा है द्वार पे तकता,
सड़क को भूल मत जाना।।

कभी यारों के संग रातों में,
तुम महफिल सजाते हो।
कभी पत्ते में भी तुम हाथ,
अपना आजमाते हो।।
कभी कुछ भी बहाना कर,
कंही घूमने चले जाते।
मगर घर लौट आना वक्त,
पर ये भूल मत जाना।।
लगाकर जाम को मुंह से,
कंही ये भूल मत जाना।

लगाते जान को बाजी में,
हरपल क्यों हो तुम अपना।
समय बेकार में यूं ही,
बिताते क्यों हो तुम अपना।।
लगाली है बुरी आदत,
किसी ने आज तक दिल से।
भला ना हो सका उसका,
कभी ये भूल मत जाना।।
लगाकर जाम को मुंह से,
कभी ये भूल मत जाना।

जीवन दिन चार का है ये,
इसे बेकार ना खोना।
कंही पड़ जाए ना अवसर,
गंवा कर बैठकर रोना।।
सम्हल जा वक्त के रहते,
इसी में ही भलाई है।
कंही संग में तेरे अपनो,
को भी पड़ जाए पछताना।।
लगाकर जाम को मुंह से।
कंही ये भूल मत जाना।।

नशा करना न तुम भाई,
समझ ले आज से अब से।
नशा करते तू आया है,
सम्भाला होश है जब से।।
मिला कुछ भी नही तुझको,
गंवाया जो भी था अपना।
जहर धीमा है ये तो राम,
कहता मान ले कहना ।।
लगाकर जाम को मुंह से,
कंही ये भूल मत जाना।।

परिचय :- रामसाय श्रीवास “राम”
निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़)
रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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