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मेरे प्यारे पापा

डॉ. अर्चना मिश्रा
दिल्ली

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एक अनंत अंतहीन
यात्रा पर निकले
छोड़ गए पूरा संसार।
माँ की आँखे हे अश्रूपूरित,
भैया करें गुहार।
पापा तुम बिन पग
कैसे रखूँ, जीवन
नैय्या बहुत कठिन।
स्मृतियों में हे
चित्र अंकित, पर
वास्तविकता में कहीं नहीं।
पग-पग जिसने
होसला बढ़ाया,
दी हरदम ही सींख।
आँखे मेरी हरदम भीगी,
करती रहती एक ही मनुहार।
जो होते तुम पापा,
यूँ ना बिखरता माँ का संसार।
कदम कदम मुझको ज़रूरत
अब कौन करायेगा नैय्या पार।
जीवन की राह बहुत कठिन
इन संघर्षों में कौन
थामेगा मेरा हाथ।
करती रहती थी शैतानी,
बात कभी भी ना मानी।
अब बहुत याद आते हो पापा,
अब किसको बोलूँ में पापा,
लौट के आ जाओ ना पापा।
पापा तुम हो गए छोड़ के
अपना संसार,
जीवन जैसे थम ही गया है,
नहीं होता अब रक्त संचार।
मन बहुत व्यथित है,
करुणा करता बारमबार।
पापा ही तो सब कुछ थे,
पापा ही थे मेरा संसार।

परिचय :-  डॉ. अर्चना मिश्रा
निवासी : दिल्ली
प्रकाशित रचनाएँ : अमर उजाला काव्य व साहित्य कुंज में रचनाएँ प्रकाशित।
आपका रुझान आरम्भ से ही हिंदी की ओर था अपने स्कूल व कॉलेज के दिनो से ही मेआपने लेखन का कार्य शुरू कर दिया था। आपने अधिकतर रचनायें कविता एवं लेख के रूप में लिखी है। आपने हिंदू कॉलेज दिल्ली से हिंदी विषय से ही अपनी बीए एमए किया तत्पश्चात् बीएड और एमएड किया। साथ ही साथ आपने काउंसलिंग एंड गाइडेंस का भी कोर्स किया।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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