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वो मज़ा कहां ..

साक्षी उपाध्याय
इन्दौर (मध्य प्रदेश)

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इस शहरी परिपाटी में
उस माटी सा मज़ा कहांॽ
गैस पर सिकी रोटियों में
कंडो की बाटी सा मजा कहांॽ
“कहां मजा है उन गांव के
कच्चे कच्चे रास्तों का
इन चौड़ी-चौड़ी सड़कों पर
वो पगडंडी सा मज़ा कहां
कहां मज़ा है यहां वो
नारंगी कुल्फी खाने में,
यहां गर्मियों में वैसा वो
लस्सी की हांडी सा मज़ा कहां
उन पेड़ों की धूप-छांव सा
इन इमारतों में मज़ा कहां
वहां के मंदिर-मस्जिद
यहां इबादतो में मज़ा कहांॽ
“कहां मजा है यहां वैसी
शरारतें करने में
यहां के लोगों में वैसी
चुलबुली आदतों सा मज़ कहांॽ
गाय के बछड़े केसर को
चूमने सा मजा कहांॽ
फ़सल निकलने के बाद काले
खेतों में घूमने सा मज़ कहांॽ
“कहां मजा है बहती नदी में
यहां पैदल-पैदल चलने का,
मस्त हवा में रोज़ रात को
आंगन में घूमने का मज़ा कहांॽ
इस शहरी परिपाटी में
उस माटी सा मज़ा कहांॽ

परिचय :- साक्षी उपाध्याय
आयु : १५ वर्ष
निवास : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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