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दर्शन से धन्य हुये

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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विधा : गीत भजन
तर्ज : तेरे इश्क का मुझे पर हुआ…

गुरु विद्यासागर के
दर्शन से हम।
मानों आज हमसब
हो गये धन्य।
गुरु विद्यासागर के
दर्शन से हम।
मानों आज हमसब
हो गये धन्य।
गुरु विद्या सागर के
दर्शन से हम।।

जिसे भी मिले दर्शन
विद्या गुरु के।
मानव जीवन उनका
सफल हो गया।
कलयुग में भी देखो
सतयुग जैसे मुनिवर।
चलते फिरते तीर्थंकर
कहते लोग उन्हें।।
गुरु विद्यासागर के
दर्शन से हम।
मानों आज हमसब
धन्य हो गये।।

चारों दिशाओं में
ऐसे मुनिवर।
बहुत कम हमें
देखने को मिले।
त्याग और तपस्या की
वो एक मिसाल है।
साक्षात जैसे वो
सबके भगवान है।।
गुरु विद्यासागर के
दर्शन से हम।
मानों आज हमसब
हो गये धन्य।।

मुझे जैसे ही मिला
गुरुवर का आशीर्वाद।
मानों आत्मा में मेरे
कमल खिल गया।
ना अपनी रही सुध तब
और न कुछ और दिखा।
बस गुरुवर का चेहरा ही
मुझे दिखता रहा।।
गुरु विद्यासागर के
दर्शन से हम।
मानों आज हमसब
हो गये धन्य।।

बुंदेखण्ड की देखो
काया बदल दी।
प्राचीन मंदिरों को
फिरसे जिंदा करवा दिया।
बच्चे बूड़े जवानो को
बहुत कुछ करवा दिया।
जहाँ से वो अपने
मार्ग को चुने।
और आत्म कल्याण
इस पथ पर चलकर करे।।
गुरु विद्यासागर के
दर्शन से हम।
मानों आज हमसब
हो गये धन्य।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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