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साहस

संजय कुमार नेमा
भोपाल (मध्य प्रदेश)

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अब ठान लिया,
साहस से उस पथ को चुनना है।
जिस पथ को बागों ने फूलों से संवारा है।
साहस ही मुझको,
सपनों से होकर मंजिल तक ले जाएगी।
साहस ही मुझे सूरज सा चमकायेगा।।
अब चुनता हूं,
उस पथ को, ऊंचे नीचे पहाड़ी रास्ते।
टेढ़े-मेढ़े रास्ते,‌ पथरीली रास्ते।
साहस से ही रास्ता बनाऊं।
रास्ते भी नऐ हैं,
नये अरमानों के बीच चौराहों को देखूं।।
रास्ता अपना खोजूं
साहस से ही नये, लक्ष्यों तक पहुंचूं।।
अट्टहास करूं,
जोर-जोर से शोर मचाऊं।।
अपने निर्णय से लोहे को ही झुकाऊं।
चमकीले पत्थरों से हमेशा दूर हो जाऊं।
अब साहस से ही चलना है।।
दिन-रात खपना है,
लक्ष्य अब लंबा लगता नहीं।
सपनों से ही हौसलों को बढ़ाऊं।
मुश्किलें मुझे झुका ना सकीं।।
सफलता की कोई तारीख तय नहीं।
साहस ही तो मुझे,
नई सोच, कार्य उत्कृष्टता से,
सफलता की सीढ़ियां चढ़वाती है।
नए अनुभवों से सीखूं संवरू और जीतूं।
सपने मेरे ही अपने हैं।।
नकारात्मकता, इनमें आती नहीं।
मुश्किलें मुझे डराती नहीं।
साहस ही तो मंजिल तक ले जाएगी।।
मंजिलों पर झंडा फहराएंगी।
साहस ही तो मेरे सपनो,
को आकर्षित करती रही।।‌‌
जोश उमंगों को भरती रही।
नऐ विचारों से,‌
नई सोचो को मनवाता रहा।
अब साहस ही मुझे नई राहें दिखलाएगी।
मेरी उपलब्धि पर मंद मंद मुस्कुराएंगी।
उम्मीदों और मेहनत से
साहस की डोर, पकड़ी है।।
रंग बिरंगी पतंगे मुझे सपने दिखलाती है।
मेरी पतंगे आकाश में गोता लगाती रही।
कल्पनाएं मेरी, साकार होती रही,
स्वभाव में बस्ती रही।
साहस ही एक दिन,
हुनर से भाग्य को चमकायेगा।
भाग्य भी परचम सा लहराएगा।।
सफलता जरूर दिलवाऐगा।

परिचय :- संजय कुमार नेमा
निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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