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पेड़ लगायें-धरा बचायें

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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सवा लाख वर्षों में अब तक,
हुई न इतनी गरमी।
ताप बड़ा धरती पर इतना,
हुई विलोपित नरमी।

दिन दिन बढ़ता तापमान पर,
कारण भी हम सब हैं।
बेकरार क्यों मौसम करता,
साधन भी जब सब हैं।

अपनी खुशियों की खातिर ही,
वृक्ष धरा से काटे।
वसुधा के सारे हिस्से ही,
कंक्रीट से पाटे।

वृक्ष हमारे सहयोगी हैं,
हमने समझ न पाया।
वृक्ष काट धरती खाली की,
अब जलती है काया।

चोली दामन जैसा ही है,
सदाबृक्ष से नाता।
सहजीवन है बहुत जरूरी,
नहीं निभाना आता।

गरल युक्त वायु लेकर भी,
प्राणवायु हैं देते।
राहगीर को छाया देकर,
हैं थकान हर लेते।

वन संपदा वृक्ष देते हैं,
फल प्रसून देते हैं।
आँखों को हरियाली देकर,
ताप सोख लेते हैं।

वृक्षों के सँग नमक हरामी,
हम सब ने ही की है।
गर्मी पड़ी जानलेवा जब,
भूल सभी ने की है।

अड़तालिस डिग्री से ऊपर,
पारा चढ़ता जाता।
दाँव लगाया जो मानव ने,
उल्टा पड़ता जाता।

रौद्र रूप धरती दिखलाती,
वर्फ़ पिघलती जाती।
धीरे-धीरे खत्म हो रही,
सभी पुरातन थाती।

जिम्मेदार स्वयं हम सब हैं,
अकल हमें ना आती।
पृथ्वी बनी आग का गोला,
लगता हमें जलाती।

भीष्म प्रतिज्ञा कर लो मिलकर,
हम सब वृक्ष लगायें।
भागीरथी प्रयास करें हम,
पुनः हरितमा लायें।

सौ पुत्रों के ठीक बराबर,
एक वृक्ष होता है।
जंगल है अनमोल धरोहर,
और वृक्ष पोता है।

बनें प्रकृति का सभी सहारा,
हरियाली छाएगी।
खूब करें वृक्षारोपण हम,
गर्मी घट जाएगी।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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