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छड़ी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक
भोपाल (मध्य प्रदेश)

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कोने में रखी
दुबकी हुई सी,
उपेक्षित नजर आती,
बाप दादाओं से
विरासत में मिली,
अमूल्य धरोहर
एक छड़ी ,
छड़ी शब्द से
कुछ यादें
ताजा होती हैं।
मास्टर जी की
दिल दहलाने
वाली छड़ी
जो हाथ पे
निशान छोड़
जाती थी,
बाबूजी की
सैर पर
जाने वाली छड़ी
जिसके साथ वे
रौबदार दिखते थे,
अपना दबदबा
बनाए रखते थे,
एक फौजी अधिकारी
की घुमाती छड़ी
जो अपनी शानदार
मूंछों को सहलाते
युद्ध के कारनामे
बतलाते थे,
कमर झुकी
शरीर का
बोझ ढोती छड़ी,
बीमार को सचेत
करने वाली छड़ी,
एक अंंधे लाचार
का सहारा
जो बिना छड़ी के
रास्ता नहीं कर सकता
पार,
मुन्ने के खिलोनों की
शोभा बढ़ाने वाली छड़ी,
पतली, कड़क,
सीधी, सर्पाकार
डिजाइन वाली,
मूठ वाली,
भूरी, काली,
सफेद, कई रंग की,
लकड़ी की,
प्लास्टिक की
कई किस्म की,
अनोखी,
जादुगर छड़ी।
लोग भले ही
उसे फेंकने को कहें
पर ये जानना जरूरी हे कि
आज ये कितनी भी
कमतर या अनुपयोगी हो
कल ये ही
बुढ़ापे का संबल होगी।

परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा पुरस्कृत हैं। आप “मैं हूं भोपाल’ के खिताब से भी सुशोभित हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा आपको अपनी एक कविता के लिए प्रशंसा-पत्र भी प्राप्त है। वर्तमान में आप एकलव्य युनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य की पीएचडी गाइड नियुक्त है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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