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खुद से लड़ना नहीं आता

गोपाल मोहन मिश्र
लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार)

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अजब कशमकश में हूँ कुछ समझ में नहीं आता
मेरे यार समझते हैं मैं समझना नहीं चाहता

जानता हूँ मेरे ग़म से परेशान है हर कोई
खुश रहना चाहता हूँ पर ग़म छुपाना नहीं आता

चाहत को मेरी उसने मज़ाक बनाकर रख दिया
फिर भी बेवफा को दिल से मिटाना नहीं आता

घुट-घुट कर जी रहा हूँ हर पल ज़िन्दगी का
मर भी जाएँ प्यार में, लेकिन बहाना नहीं आता

सोचते हो तुम कि डरता हूँ मुसीबतों से
कमज़ोर नहीं हूँ, लेकिन खुद से लड़ना नहीं आता

बहा देता ग़म को कब का अपने दिल से
तेरी तरह अफसोस, लेकिन लिखना नहीं आता

परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र
निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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