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मधुमय प्याला छलका दो

अशोक पटेल “आशु”
धमतरी (छत्तीसगढ़)
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मेरे हृदय का आँगन है सुना-सुना
सुरभित प्यार की बगिया खिला दो।
सदियों से हूँ मैं तेरे प्यार का प्यासा
तू बनके बरखा मेरी प्यास बुझा दो।।

बन जाओ तुम मेरी मधुमय साकी
प्यार का मधुमय प्याला छलका दो।
हो जाऊँ मैं भी तेरा मदमस्त दीवाना
बस मुझको थोड़ा-थोड़ा बहका दो।।

बनके होठों का प्याला तुम जरा सा
मुझको मधुमय रस का पान करा दो।
हो जाऊँ मैं मगन मदहोश भम्रर सा
हृदय से मुझको आलिंगन करा दो।।

प्यार में छा जाए कुछ ऐसी मदहोशी
ऐसी होश न मुझको कभी भी आए।
प्यार का ऐसा जाम पीला दे तू साकी
कि उमर भर फिर चाहत न रह जाए।।

परिचय :अशोक पटेल “आशु”
निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़)
सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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