उत्कर्ष सोनबोइर
खुर्सीपार भिलाई
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मुझे इस छत्तीसगढ़ी फिल्म का, बहुत दिनों से इंतजार था, २७ मई को रिलीज़ होनें के बाद, मुझे इस फिल्म को देखने की उत्सुकता और भी बढ़ गई, हां और मेरें परीक्षा होतें ही मैंने भिलाई के मुक्ता सिनेमा में देख ही लिया। भूलन द मेज़, पहली ऐसी छत्तीसगढ़ी फिल्म है जो राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए नामित हुई और गत वर्ष उपराष्ट्रपति, श्री एम वेंकैया नायडू जी के कर कमलों द्वारा भूलन द मेज़ को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा भी गया। छत्तीसगढ़ नई फिल्म नीति के तहत इस फिल्म को एक करोड़ रूपये का अनुदान राशि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दिया जाएगा। यह फिल्म संजीव बख्शी के उपन्यास ‘भूलन कांदा’ पर आधारित है, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी वरिष्ठ निबंधकार के सानिध्य और दादी की दुलार ने उन्हें लेखक बनने प्रेरित किया, मैं तो कहूंगा की उन्हें साहित्य प्रेम विरासत में मिली थी। बख्शी जी खैरागढ़ में जन्में और राजनांदगाव के दिग्विजय कॉलेज में पढ़े-बढ़े है, उन्होंने मुख्यमंत्री के सयुंक्त सचिव, तहसीलदार समेत और बहुत से बड़े पद समाले हैं। भूलन कांदा भी उनके पोस्टिंग एरिया ग्राम महुआभाठा जिला गरियाबंद की एक घटना का व्यंग्यात्मक और मार्मिक वर्णन है। भूलन एक प्रजाति का वनस्पति पौधा है जिसके छूते ही आदमी भूल जाता है, और उस जगह पर भटक भटक कर घूमते रहता है।
इस फिल्म में एक खून भी हो जाता है जिसे गंजहा के माथे मड दिया जाता है, एक परिवार को बचाने एक निर्दोष को जेल हो जाता है, एक परिवार को बचाते संपूर्ण गांव को हवालात की रोटी खाने पड़ी यही फर्क है साहब शहर और गांव में, उसके बाद भी पूरा गांव उत्साह के साथ जेल भी जाता है, उनकी उत्साह देखने योग्य है, वे कैसे टैक्टरों में लद कर जेल जाते और उन्हें किसी चीजों का गम भी नहीं होता नाचते गाते ददरिया गाते त्योहारों की तरह झूमते यही खूबसूरती छत्तीसगढ़ की है साहब और यह छत्तीसगढ़ में ही संभव है।इस फिल्म के निर्माता निर्देशक मनोज वर्मा जी है, वे बताते है कि जब बख्शी जी “तहुँ दीवाना अउ महुँ दीवाना” फिल्म देखने को आये थे तब उन्होंने बताया था की वे एक कहानी लिख रहें हैं जो फिल्माया जा सकता है,और उनके कहानी बताने के बाद वे राज़ी भी हो गए। करीब २०१६ से बनने आरम्भ हुई इस फिल्म को २०२२ में सफलता मिली। इस फिल्म के गीत के बोल छत्तीसगढ़ के रसखान कवि मीर अली मीर ने लिखी है, “नंदा जाहि का रे” छत्तीसगढ़ी गीत है जिसमें छत्तीसगढ़ के उन तमाम चीजों का वर्णन किया है जो नंदा सा गया है, वे लिखतें है कि कमरा अउ खुमरी आरी तुतारी अरारारा ता ता छो…कमरा एक ब्लैंकेट की तरह कपड़ा है जो भेड़ की बालों से बनती है, खुमरी सर पर पहना वाला टोकरीनुमा आकर का टोपी है जो अक्सर यादव लोग ही पहनते है, तुतारी बैल को भगाने नुकीला हथियार है, और अरारा दायें और ता ता ता बायें बैल के लिए है चरवाहा के ऐसे बोलते ही दोनों बैल परस्पर भागने लगते है। झूमर जा पड़की झूमर गीत भी मन मोह लेने वाला था, कोर्ट में भी नाचते और पड़की की तरह झूमते ऐसा छत्तीसगढ़ में ही संभव है, छत्तीसगढ़ के गउ लोग उन्हें प्रतीत ही नहीं होता की किस बात को छुपाना है और किस को बताना है, इस फिल्म में ओमकार दास मानिकपुरी भकला का अभिनय कर रहें और परेमिन की भूमिका मुंबई की अभिनेत्री अनिमा पंगारे कर रही हैं। मुझे भकला का अभिनय बेहद पसंद आया, भकला का तकिया कलाम हावो सुनते ही मज्जा ही आ जाता, भकला का अभिनय आते ही टाकीज़ में कहीं पीछे से हाव का आवाज आ ही जाता, भकला का गलत जगह हाव बोलने से उसकी जान भी जा सकती थी। इस फिल्म में छत्तीसगढ़ की संस्कृति और मेला मड़ई को भी देखने को मिला, सेवक राम यादव, पुष्पेंदर सिंह, महानंद जी, अनुराधा दुबे, उपासना वैष्ण्व अशीष जी, वकील सोनी सब चिड़िया घर धारावाहिक के बाबू जी राजेंद्र मिश्रा ने वकील और मुकेश तिवारी ने सरकारी वकील का रोल अदा किये हैं ।
सुनील सोनी जी इस फिल्म के संगीत निर्देशक है, फिल्म में संगीत धुन में छत्तीसगढ़ के लोक धुन सुवागीत, नाचागीत और शोक में बांस गीत भी सुनने को मिला जो अद्धभुत थी, पहली बार ऐसा हुआ है की छत्तीसगढ़ी फिल्म मल्टीप्लेक्स पर लगी है।
फिल्म में यह संदेश भी दिया है कि हमारी न्याय पालिका भूलभुलैया की तरह है, कानून सभी के लिए है पर कानून बनाने वाला एक बड़ा व्यक्ति ही होता है, इस फिल्म में यह भी बताया गया गया है की कैसे आदिवासियों पर जबरन कानून थोप दिया जाता जिन्हें कानून का क भी मालूम नहीं होता है। यह फिल्म ने हमारी कानून व्यवस्था पर बड़ी सवाल भी उठाई है, और कानून को भूल भुलैया कहा है और अधिकारी इस प्रकार भटक रहें और भटका भी रहें जैसे उनका पैर भूलन पर पड़ गया हो।छत्तीसगढ़ की पहली ऐसी फिल्म है जो ज़रा हटके है, इस फिल्म को देखने जरूर अपने नजदीकी सिनिमा घरों में परिवार सहित देखने जरूर जाये। आखिर छत्तीसगढ़ फिल्म की ख्याति छत्तीसगढ़ की भी मान है और हम सबकी शान भी। जय छत्तीसगढ़ !
परिचय :- उत्कर्ष सोनबोइर (विधार्थी)
निवासी : खुर्सीपार भिलाई !
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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