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अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो… वाद-विवाद

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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वाद-विवाद

आदरणीय निर्णायक गण, विपक्ष के प्रतिभागी एवं उपस्थित मेरे प्रिय साथियों !!! मैं सरला मेहता प्रदत्त विषय के पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करना चाहती हूँ। पूर्व जन्म में मैं क्या थी, मुझे नहीं पता। किन्तु अगले जन्म में भी मुझे बिटिया बनने की ही चाह है।
हाँ, सुना है मैंने ‘नारी सर्वत्र पूजयते’। मैं पूजित होने के लिए नहीं वरन परिवर्तन की प्रणेता बनने के लिए बेटी के रूप में पुनः आना चाहूँगी। अभी तक मैं अनुभव ही बटोरती रही। अब मैं चाहती हूँ कि उनका सदुपयोग कर सकूँ। बेटी- जन्म के प्रति सामान्यजन की सोच बदलना चाहती हूँ। अभी वह इस संसार में आई ही नहीं है। जन्म पूर्व ही उसका पोस्टमार्टम कर दिया जाता है। मैं चाहती हूँ कि मेरा स्वागत भी एक बेटे जैसा ही हो। अरे! सुने होंगे ना पारम्परिक गीत। जन्मे बच्चे के लिए गाया जाता है,
“अवधपुरी जनम लियो रघुवीर ” या
“जच्चारानी के हुआ गोपाल, लोग लुगाई सब हुए खुशहाल”
मैं चाहती हूँ लोग गाए….
“मेरे घर आई एक नन्हीं परी” या
“सीता राधा मीरा अहिल्या जाई, जग में बटत बधाई, खुशियाँ छाई”
*मेरे विरोधी कहेंगे… अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, गाड़ी खींचने के लिए दो पहिए चाहिए। शायद उन्हें अकेली सीता द्वारा लव कुश की आदर्श परवरिश याद नहीं है। मदर इंडिया चलचित्र की नायिका ने तो दो बैलों की कमी को पूरा किया है। बिना पुरुष सहारे के भी एक नारी सब कुछ कर सकती है, यह तर्क अपने विरोधियों को समझाना चाहती हूँ। इसके लिए एक जन्म कम पड़ रहा है।
*मेरे विपक्ष के साथियों की राय बदलने की पुरजोर कोशिश करना चाहती हूँ। वे तो यही कहेंगे कि औरतों की अक्ल उनकी चोटी में रहती है। ऐसा होता तो पुरातन काल में गार्गी, अरुन्धती पुरुषों से वाद-विवाद नहीं कर सकती थी। इंदिरा गाँधी भंडार नायके शिखर की नेता नहीं होती। कोई सुनीता कल्पना नहीं होती। कोई अरुणा आसफ अली पराधीन देश में राष्ट्रध्वज नहीं फहराती। हाँ, शायद इसीलिए कहते तो यह भी हैं कि मर्दों की बुद्धि घुटनों में रहती है। तो मैं पुनः बेटी बनकर हम बेटियों की महत्ता दर्शाना चाहूँगी। मैं सिद्ध करना चाहती हूँ कि स्त्रियों की अक्ल चोटी में नहीं रहती है।
*विपक्षी तो इसी बात पर जोर देंगे कि एक पुरुष भी महिला की तरह दोहरे कर्तव्य बखूबी निभा सकते हैं। तो झांकिए उन घरों में जहाँ गृहस्वामिनी नहीं है। सच, बिन घरनी घर भूत का डेरा। पिता नहीं है तो माँ दोहरे दायित्वों का भार अपने नाज़ुक काँधों पर भी भलीभाँति उठा सकती है। शहीद जनरल विपिन रावत व पत्नी को मुखाग्नि बेटियों ने देकर अपना हौंसला बनाए रखा। और ऐसी कई बेटियाँ हैं जो बेटों की जिम्मेदारियां उठा रही हैं।
मैं सभी बेटियों के इरादे मेरे अगले जनम में और भी मजबूत करना चाहती हूँ। यह भी देखा है कि बेटों के होते हुए भी माता पिता बुढ़ापा अकेले ही झेलते हैं व दर दर की ठोकरें खाते हैं। बेटे धन सम्पति अपने नाम कराने तक ही बेटे रहते हैं। सबसे ज्वलन्त उदाहरण है ख्यातिप्राप्त उद्योगपति सिंघानिया जी का। वे अपनी पत्नी के साथ एक साधारण ज़िन्दगी जी रहे हैं। उनकी ग़लती इतनी भर थी कि जीते जी करोड़ों की सम्पति का मालिक बेटे को बना दिया। मैं अगले जनम में भी अपने अधूरे कार्य पूर्ण करना चाहती हूँ। ऐसे भोले भाले अभिभावकों को न्याय दिलाना चाहती हूँ। कानून हैं बेटियों की सुरक्षा के लिए किन्तु कानून कागज़ों पर ही रह जाते हैं। मैं वकील बन कर बेटियों को मिले अधिकारों की कार्यरूप में परिणीति देखना चाहती हूँ।
*अभी भी भारतीय परिवारों में मान्यता है कि बेटा कुल का पालक है। किन्तु मैं कहूँगी कि सही मायने में बेटियाँ ही कुल की चालक हैं। ‘बिना बेटियाँ कैसे सम्भव राम कृष्ण के अवतार, इनसे ही तो होता है दो दो परिवारों का उद्धार।
*बेटियों की बात करूँ तो सबसे दर्दनाक पक्ष है बेटियों के साथ होने वाले अनाचार व अत्याचार। कड़े कानून कायदे हैं, सजाएँ हैं किंतु बचपन से पचपन तक की जनानियाँ शारीरिक भूख मिटाने का साधन मात्र मानी जाती हैं। कई शिवानी, एलिना निर्भया दामिनी आदि जैसी मासुमाएँ, अदखिली कलियाँ क्यारियों में ही कुचल व मसल दी जाती है। मैं जब तक जन्म लेती रहूँगी तब तक इन निर्दोष बालाओं, स्त्रियों को न्याय ना दिला दूँ। मैं…
“अबला नारी है तुम्हारी यही कहानी” के स्थान पर चाहती हूँ कि …
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो” लोग यह याद रखे।
ऐसे दुर्दांत बलात्कारियों को तुरत-फुरत कड़ी सजा दिलाना चाहती हूँ। अरे फाँसी नहीं अपितु अंग भंग की सजा कि अपराधी जीवनपर्यन्त भुगतते रहे। और मैं जन्म पर जन्म लेती रहूँगी सतत।
बच्चियाँ यह नहीं गाए…
“दहलीज़ ऊँची है पार करा दो ना” वे कह सके,
“माँ बाबा अब आ जाओ, अपनी उँगली हमें थमाओ”
मैं आती रहूँगी हर जनम में बेटी बनकर ही। जब तक मैं दुर्गा लक्ष्मी पद्मिनी अहिल्या जैसी वीरांगना बनकर अपना मकसद ना पूरा कर लूँ।
घन्यवाद।

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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