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मिट्टी व नदी का उलाहना

मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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कुछ थोड़ा बहने दो मुझे
कुछ थोड़ा सहने दो मुझे
कुछ थोड़ी जमने मैं दो मुझे
मुरझाए वृक्ष संभालने दो मुझे।
जैसे तुम रोक नहीं सकते
उदय अस्त होते रवि को
जैसे तुम रोक नहीं सकते
चांदनी बिखेरते चंद्र को
जैसे तुम रोक नहीं सकते
गरजते बादल
उसी भांति हमें भी
स्वतंत्र करो।
मत जकड़ो हमें
अपने बंधनों में
बंधन में बंधना
ठीक नहीं
चढ़ना, उतरना
अस्तोदय नियति है
हमें भी नियति के
साथ रहने दो।
जीवन के पलों को
मनु के साथ बहने दो
भोग-भोग लालसा
सब क्षणिक है
क्षणों के लिए
स्वयं के लिए
औरों को दूर मत करो
हमें जीने दो हमारी
नियति के साथ
मुझे बहनेे तो
कल-कल ध्वनि के।
हमें बढ़ने दो पत्तों की
सरसराहट के साथ।
मुझे जीने दो हरी
पीली फसलों के साथ।
मुझे गहराई को थामने दो।
मैं तुम्हारे लिए हूं,
न की तुम मेरे लिए।

परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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