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संधि और उसके भेद

डाॅ. दशरथ मसानिया
आगर  मालवा म.प्र.
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दो या दोधिक वर्ण से,
मिलके संधी आन।
वर्णो का ही खेल है,
कहता सकल जहान ।।१

स्वर व्यंजन अरु विसर्ग,
संधि भेद है तीन।
शब्दों को विच्छेद कर,
संधी होती छीन।।२

स्वर से ही जब स्वर मिले,
स्वर संधी का आन।
अच् हल् हल् हल् जब मिलें,
व्यंजन संधी मान।।३

वरण बीच विसर्ग लगे,
विसर्ग संधी आन।
संधी तीनों जानिये,
कहते संत सुजानन।।४

दीर्घ अयादि वृद्धि अरु,
गुण यण को पहिचान।
स्वर संधि के पाँच रूप,
कहत हैं कवि मसान।।५

स्वर – विद्या+आलय = विद्यालय
व्यंजन – जगत्+नाथ = जगन्नाथ
विसर्ग – रामः+अयम् = रामोऽयम्

परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिंदी गायन की विशेष विधा जो दोहा चौपाई पर आधारित है, चालीसा लेखन में लगे हैं। इन चालिसाओं को अध्ययन की सुविधा के लिए शैक्षणिक, धार्मिक महापुरुष, महिला सशक्तिकरण आदि भागों में बांटा जा सकता है। उन्होंने अपने १० वर्ष की यात्रा में शानदार ५० से अधिक चालीसा लिखकर एक रिकॉर्ड बनाया है। इनका प्रथम अंग्रेजी चालीसा दीपावली के दिन सन २०१० में प्रकाशित हुआ तथा ५० वां चालीसा रक्षाबंधन के दिन ३ अगस्त २०२० को सूर्यकांत निराला चालीसा प्रकाशित हुआ।
रक्षाबंधन के मंगल पर्व पर डॉ दशरथ मसानिया के पूरे ५० चालीसा पूर्ण हो चुके हैं इन चालीसाओं का उद्देश्य धर्म, शिक्षा, नवाचार तथा समाज में लोकाचार को पैदा करना है आशा है आप सभी जन संचार के माध्यम से देश की नई पीढ़ी को दिशा प्रदान करेंगे।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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