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शब्द श्रद्धांजलि

डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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मौत भी रोई होगी ऐसा मंज़र देखकर।
उसे दरिंदे मिलें इंसानी नक़ाब पहनकर।

अनजान पहुंची होगी भेड़ियों की मांद में,
वो भोली निश्छल उन्हें अपना मानकर।

टूटकर बिखरी थीं इक मां, बहन बेटी,
सिसकी घबराई होगी वो खतरा भांपकर।

दुराचारियों ने नोंचा मासूम रूह तन को,
बचने की लाख कोशिश की हैवान जानकर।

पशु भी नहीं करते इतने घृणित कर्म,
वो किया दरिंदों ने उसे लाश समझकर।

दुःख, वेदना, पीड़ा, आंसू, ख़ून, कत्ल सब,
बौने नज़र आये बहन तेरा दर्द जानकर।

आंखों पर पट्टी बांधकर गांधारी मत बनो,
उठा लो खंजर करोगे क्या हाथ बांधकर।

जी कर भी क्या करोगे ऐसी जिंदगी का,
कायर डरपोक मरी मानवता साधकर।

खोखले कानून और गूंगी बहरी सरकार,
रोज रौंधी जाती है नारी नारायणी कहकर।

अब सरेराह कत्ल करों, इन दानवों का।
इन्हें फांसी पर लटकाओ रस्सी तानकर।

बहन बादाम नमन मेरे शब्द सुमन अर्पित,
संकल्प तुझे न्याय मिले हक पहचान कर।

परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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