धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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जन्म – ५६३ ई.पू., लुम्बिनी (नेपाल) ; कपिलवस्तु के पास
मृत्यु – ४८३ ई.पू., कुशीनगर (भारत) ; माता – महामाया(मायादेवी), पिता – शुद्धोधन
जीवनसाथी – राजकुमारी यशोधरा, पुत्र – राहुल, विमाता – महाप्रजापती गौतमी——————————————————————–
:::::::::::गौतम बुद्ध के जीवन दर्शन::::::::::#########################
भारत की पवित्र भूमि पर कई देव तुल्य महापुरुषों ने जन्म लिया |
अपने कृत्य व कृति के बल पर मानव समाज का कल्याण किया ||ऐसे असाधारण विभूति महात्मा बुद्ध का मानव रूप में अवतरित हुए |
अध्यात्म की ऊँचाइयों को छूकर विश्व – पटल पर नाम रोशन किये ||________भाग – १________
——————————————————————-::::::::: शिक्षा व विवाह ::::::::::
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बचपन का नाम सिद्धार्थ था, पिता शुद्धोधन कहलाए |
माता मायादेवी, मौसी महा प्रजापती गौतमी कहलाए ||साधुओं की भविष्य वाणी थी, सिद्धार्थ एक महान दार्शनिक कहलाएँगे |
सिद्धार्थ तो सिद्धी प्राप्ति करके महान पथ-प्रदर्शक व योगी बन जाएँगे ||माता-पिता का एक सपना घर-परिवार चलाने की चाह |
सोलह वर्ष की उम्र में कर दी यशोधरा के साथ विवाह ||वेद और उपनिषद का था उन्हें पूरा ज्ञान |
राजकाज, युद्ध विद्या, बल में था महान ||भोग-विलासता जीवन जीने का भरपूर प्रबंध राजा शुद्धोधन ने कर दिया |
तीन ऋतुओं के लिए अलग-अलग जगह पर तीन सुंदर महल बना दिया ||दाम्पत्य जीवन में पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई |
राहुल के नाम से सारे जगत में रोशन हो गई||सांसारिक माया मोह देख मन वैराग्य में रम गया |
सम्यक सुख शांति के लिए परिवार को छोड़ गया ||——————————————————————
________भाग – २________
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बसंत ऋतुओं में सिद्धार्थ का सैर और विरक्ति का भाव
——————————————————————-सुकुमार सिद्धार्थ एक दिन बगीचे के सैर पर निकल गये |
इफ्तफ़ाक से रास्ते पर एक बुढ़ा आदमी से जा मिल गये ||देखा ! दांत झड़ गये थे और बाल भी पक गये |
शरीर टेढ़ा-सा हो गया तो लाठी थाम कर गये ||दूसरे दिन देखा तो आँखों के सामने एक रोगी का सामना हो गया |
साँसे तेजी से चल रही थी पेट रहा फुला तो कंधे ढीला हो गया ||बाँहे सूखा-सा दिखने लगा और शरीर पीला-सा हो गया |
रोगी की सच्चाई जानकर सुकुमार सिद्धार्थ हैरान हो गया ||तीसरी बार सुकुमार घुमने गये थे तो एक अर्थी देख पड़े |
शव यात्रा में चार आदमी के साथ और भी पीछे चल पड़े ||पीछे-पीछे बहुत से लोगों में कोई रो रहा था |
कोई छाती पीट रहा तो कोई बाल नोंच रहा था ||चौथी बार भी सुकुमार सैर करने बगीचें को निकल पड़ा |
रास्तें में उसे साधू-संन्यासी का दर्शन करने का मन पड़ा ||काम क्रोध लोभ मोह ये जीवन की मनोविकार है |
सद्पथ पर चलना सिखाया संन्यासी की पुकार है ||सिद्धार्थ को विचार आकृष्ट कर गया साधू संन्यासी का प्रभाव |
आत्म संयमित जीवन जीना हो गया सुकुमार का स्वभाव ||ऐसी घटना देखकर सिद्धार्थ का मन तो विचलित हो गया |
धिक्कार है जवानी अब तो जीवन का सपना पूरा हो गया ||——————————————————————
________भाग – ३ ________
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भगवान बुद्ध का महाभिनिष्क्रमण एवं ज्ञान की प्राप्ति
——————————————————————-अब तो गृहस्थी परिवार धर्म पत्नी यशोधरा को छोड़ गये |
दूधमुँहे बालक राहुल को छोड़ तपस्या के लिए चल पड़े ||राजभोग विलासता को मन से परित्याग कर दिये |
कपिलवस्तु जैसे राज्य मोह छोड़ राजगृह पहुँच गये ||घुमते-फिरते, भिक्षा मांगते गुरु ‘आलार कलाम’ के पास चले गये |
वहाँ उनके साथ रहकर योग साधना व समाधि लगाना सीख गये ||संतुष्टि नहीं मिला तो राजगृह त्याग सिद्धार्थ उरुवेला चले गये |
तिल चावल खाकर तरह–तरह से कठोर तपस्या शुरू कर गये ||छः मास तक घोर तपस्या किए तो शरीर सुखकर कांटा-सा हो गये |
चलते स्त्रियों के मुख से वीणा के तारों… के गाने चरितार्थ हो गये ||साधना में बैठे सिद्धार्थ के कानों में राहगीर की बात जंच गई |
नियमित आहार – विहार, संयम से योग-साधना सिद्ध हो गई ||पीपल वृक्ष नीचे बैसाखी पूर्णिमा को सिद्धार्थ ध्यानस्थ हो गये |
गया में निरंजना नदी के तट पर कठोर तपस्या में बैठ गये ||
वृक्ष देवता समझकर सुजाता वहाँ आदर से खीर भेंट कर गये ||पुत्र-रत्न की प्राप्ति से सुजाता की मनोकामना पूर्ण हो गई |
रात को समाधि में बैठे सिद्धार्थ की साधना सफल हो गई ||सच्चा ज्ञान प्राप्ति से सिद्धार्थ गौतम बुद्ध कहलाये |
पीपल नीचे बोध मिला तो पेड़ बोधि वृक्ष कहलाये ||३५ वर्ष की अवस्था में सिद्धार्थ को बोध मिल गया |
‘गया’ स्थान का नाम उस दिन से बोधगया हो गया ||गौतम बुद्ध के त्रि-रत्न – बुद्ध, धम्म और संघ
गौतम बुद्ध के पंचशील – १. हिंसा न करना २. चोरी न करना ३. व्यभिचार न करना ४. झूठ न बोलना ५. नशा न करना———————————————————————
________भाग – ४________
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धर्मचक्र परिवर्तन
———————————————————————लोकभाषा ‘पाली’ में ही धर्म का खूब प्रचार प्रसार करते रहे |
सीधे सरल भाषा में धर्म की लोकप्रियता तेजी से बढ़ते रहे ||बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान भक्ति में जुट गये |
बौद्ध धर्म उपदेश हेतु सारनाथ पहुँच गये ||बौद्ध मित्रों को अपना अनुयायी बनाकर वे धन्य हो गये |
धर्म प्रचार हेतु शिष्यों को चहूँओर दिशा भेज दिए गये ||विमाता गौतमी को “बौद्ध संघ” में प्रवेश मिल गया |
बुद्ध का अतिप्रिय शिष्य आनंद को उपदेश दे गया ||________भाग – ५________
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महापरिनिर्वाण
——————————————————————-भगवान बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश दे गया |
दुःख,कारण और निवारण का अष्टांगिक मार्ग बता गया ||सत्य और अहिंसा परमो धर्मः पर चलने का मार्ग बता दिया |
आर्यसत्य की संकल्पना बौद्ध दर्शन के सिद्धांत में बता दिया ||कहते है कुंडा लोहार जाति के हाथों आखिरी निवाला खाया |
खाने के बाद से महात्मा बुद्ध अपने आप को अस्वस्थ पाया ||बुद्ध ने माना बीमारी बढ़ने का कारण विषाक्त भोजन का नहीं है |
बुद्ध ने आनंद को निर्देश दिया उन्हें समझाये गलती उनका नहीं है |वैद्य भी स्वीकार किये कि ये तो वृद्धावस्था के लिए महापुण्य है |
कुंडा ने जो भोजन भेंट किये है वह स्वास्थ्य के लिए अतुल्य है ||“बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” हेतु धर्म प्रचार कर गये|
८० वर्ष की आयु में बौद्ध संघ से महापरिनिर्वाण हो गये ||चार आर्य सत्य-
१. दुःख है २. दुःख का कारण है ३. दुःख का निरोध है ४. दुःख निरोध पाने का मार्ग हैअष्टांगिक मार्ग- १. सम्यक दृष्टि २. सम्यक संकल्प ३.सम्यक वाक ४. सम्यक कर्म ५. सम्यक जीविका ६. सम्यक प्रयास ७. सम्यक स्मृति ८. सम्यक समाधि
परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
निवासी : भानपुरी, वि.खं. – गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़
कार्यक्षेत्र : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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