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श्रद्धांजलि

प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे
बीड, (महाराष्ट्र)
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 “विभोर, कॉलेज से आते आते एक फूल माला लेकर आना।” फुलमाला किसलिए मां.. ? आज कोई त्यौहार है क्या? अरे नहीं, वो हमारे स्नेही माधव काका…, उनके श्रद्धांजलि कार्यक्रम में जाना है, तो मैंने सोच लिया.. साथ में फूल माला लेकर जाते हैं। तस्वीर पर चढ़ा देंगे, उनके आत्मा को शांति मिलेगी।
“अरे मम्मी, फूल माला चढ़ाने से न आत्मा को शांति मिलती है, न कोई पुण्य मिलता है। यह तो केवल दिखावा है। जब बिस्तर में पड़े थे तो उन्होंने कितनी बार तुझे याद किया, मिलने को बुलाया। वह आपसे बातें करना चाहते थे। अपना दिल हल्का करना चाहते थे। पर तुझे उन्हें मिलने को न समय मिला, न उनके साथ ठीक से बात कर पायी और आज उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने जा रही हैं!!!!”
बेटे की बात सुनकर माँ बोली “वैसा कुछ नहीं है, विभोर। मैं उनसे मिलने कई बार गई थी। इस छ: महीने में नहीं जा पायी, वो भी तुम्हारी वजह से। आजकल मुझे कहाँ फुर्सत मिलती है बाहर निकलने को?” माँ ने अपनी बात स्पष्ट की।
सच कहूं माँ, “आजकल के श्रद्धांजलि कार्यक्रम में शोक कम और दिखावा ही ज्यादा नजर आता है। वैसे भी आज कालेज में अतिथि व्याख्यान का कार्यक्रम है, मुझे आने में देर होगी।” कहते हुए विभोर निकल पड़ा। “क्या वह सच में सही कह रहा था…. ?”

परिचय :-  प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे
निवासी – बीड, (महाराष्ट्र)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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