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मातृ दिवस

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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मां की छवि ईश्वर सम, मत खोजो तुम तोड़।
सपने सच करती चले, व्यर्थ मां से होड़।।

प्रेम हिफाजत ध्यान में, गुजरे सालों साल।
बाल न बांका हो सके, हरदम ठोके ताल ।।

रोटी टुकड़े चार जब, खाने वाले पांच।
भूख नहीं है मां कहे, चरम स्नेह की आंच।।

कष्टों में मां घिरी रहे, दब जाती है हूक।
मुंह खुले आशीष में, अकसर दिखती मूक।।

करे बच्चों की पैरवी , बनती रहती ढाल।
बरसो बरस राज रहे, ये ममता की चाल।।

मातृ दिवस याद सिर्फ, चल न सके परिवार।
ममत्व छांव पले सदा, जल थल नभ संसार।।

जनम जनम न उतर सके, मां का ऐसा कर्ज।
भाग्य यदि मां देखती, कोख पले का फर्ज।।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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