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जरा मुस्कुरा दो माँ

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)
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जरा मुस्कुरा दो माँ
तेरा आँचल मेरे चेहरे पर डाल
जब आँचल खींच बोलती “ता”
खिलखिलाहट से गूंज उठता घर।

गोदी में झूला सा अहसास
मीठी लोरी माथे पर थपकी
अपलक निहारने नींद को बुलाने
आ जाने पर नरम स्पर्श से
माथे को चूमना।

आँगन में तुलसी सी मां
मेरी तोतली जुबान पर
मुस्कुराती माँ
क्योकि मैने तुतलाती जुबान से
पहला शब्द बोला “माँ”
जैसे बछड़ा बिना सीखाये
रम्भाता “माँ”
दुआओं का अनुराग लिए
रिश्ते-नातों का पाठ सिखाती माँ
खाना खाने की पुकार लगाना
जैसे माँ का रोज का कार्य हो।

वर्तमान भले बदला
माँ की जिम्मेदारी नहीं बदली
अब भी मेरे लिए
सदा खुश रहने की
मांगती रहती
ऊपर वाले से दुआ।

रात हो गई अभी तक
नहीं आया की
माँ करती रहती फिक्र
ऐसी पावन होती है माँ।

खुद चुपके से रो कर
हमें हँसाने वाली माँ
पिता के डाटने पर
मेरी पक्ष धर होती माँ।

माँ कभी न रूठना तुम
सदैव मुस्कुराना माँ
मै अब बड़ा होगया हूँ किन्तु
माँ की नजरों में
रहूँगा सदैव ही छोटा।

माँ को मेरी चिंता में
मै माँ से कहता
जरा मुस्कुरा दो
वो मुस्कुरा के माथे पर
हाथ फेर कहती
कितना बड़ा होगया
अब मेरा बेटा
बड़ी-बड़ी बातें मुझे समझाने की
मुझसे बातें जो करने लगा।

परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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