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जमीं पर नहीं पैर मेरे!

प्रभात कुमार “प्रभात”
हापुड़ (उत्तर प्रदेश)

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जाने क्यों आज,
जमी़ पर नहीं पैर मेरे !
मैं होंसलों के पंख लगा,
एक नई उडा़न भरना

चाहती हूँ नील गगन में।
मैं पंछी बन स्वच्छंद,
ऊँचाइयाँ चूमना
चाहती हूँ नील गगन में।

मीलों दूर चली जाऊंँ
अनंत आकाश में,
खिसक न जाए जमीं
पैरों से मेरे,
मैंआना चाहती हूँ
पुनः घरोंदों में,
पैर सदा रहें जमी पर मेरे।
जाने क्यों आज
जमी पर नहीं पैर मेरे!

सागर में गहराई जितनी
हृदय में इतनी थाह ले,
जीवन का हर संघर्ष
मैं जीतना चाहती हूँ
जिंदगी के बाद भी
अस्तित्व मेरा बना रहे,
पैर सदा रहें जमीं पर मेरे।
जाने क्यों आज
ज़मीं पर नहीं पैर मेरे!

मैं अतीत, मैं वर्तमान हूँ,
मैं जननी भविष्य की हूँ,
मेरी संतति, मेरी संस्कृति
मेरेअस्तित्व की जड़ें
सागर की गहराई सी.
जमी रहें हर काल में,
उपस्थिति सदा रहे मेरी,
नीलाम्बर की ऊँचाइयों में।
पैर सदा जमीं पर रहें मेरे
जाने क्यों आज
जमीं पर पैर नहीं मेरे!

अभिमान वश कभी
अहंकारी न हो जाऊंँ,
धरा का धैर्य धारण करना
चाहती हूँ,
वसुधा के आंचल में,
पैर सदा ज़मीं पर रहें मेरे।
जाने क्यों आज
ज़मीं पर पैर नहीं मेरे!

परिचय :-  प्रभात कुमार “प्रभात”
निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत
शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड.
सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़
विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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