प्रीति तिवारी “नमन”
गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
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किया जिन्दगी सुलूक तुमने, जिसके हम हकदार नहीं थे,
मिले अश्रु मिले मुस्कान के बदले, यूँ तो हम उदार नहीं थे।सिखा गये कुछ अनुभव हमको, दिल को पत्थर बना लिया,
जिसने जैसा समझा जाना, वैसा चेहरा दिखा दिया।राह चले फूलों की लेकिन, चुभे पांव में काँटे हैं,
सीख मिली नित नूतन हमको, फिर भी फूल ही बांटे हैं।आदत से मजबूर “मलय” सम विष के सांझेदार नहीं थे,
किया जिन्दगी सुलूक तुमने, जिसके हम हकदार नहीं थे।मिलन जुदाई मोह लोभ और द्वेष दंभ दानवता के,
पाया प्रेम विराग भी है, और किस्से कुछ मानवता के।सब्र और साहस से तोड़े अहम भी, वो दमदार नहीं थे,
किया जिन्दगी सुलूक तुमने, जिसके हम हकदार नहीं थे।हुये सफल भी और विफलता, यश अपयश सम्मान मिला,
बिना बात रुसवाई पाई, रिश्तों में उन्मान मिला।।छी न रहे जो हक हैं हमारा, जो वो दावेदार नहीं थे,
किया जिन्दगी सुलूक तुमने…सहन किये संदेह शूल भी, ऊँच नीच दुनियादारी की
,परम्पराएं रस्में कसमें, और कुरीति की सरदारी भी।
दिल पर कब्जे हुये दर्द के, वो तो हिस्सेदार नहीं थे,
किया जिन्दगी…रंगे खुशी उल्लास रंग से, बहल गये अपनों के संग से,
दिल को किया हवाले उनके, तनिक भी जो दिलदार नहीं थे।
किया जिन्दगी सुलूक तुमने, जिसके हम हकदार नहीं थे।
निवासी : गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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