Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

अनुभव

प्रीति तिवारी “नमन”
गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

********************

किया जिन्दगी सुलूक तुमने, जिसके हम हकदार नहीं थे,
मिले अश्रु मिले मुस्कान के बदले, यूँ तो हम उदार नहीं थे।

सिखा गये कुछ अनुभव हमको, दिल को पत्थर बना लिया,
जिसने जैसा समझा जाना, वैसा चेहरा दिखा दिया।

राह चले फूलों की लेकिन, चुभे पांव में काँटे हैं,
सीख मिली नित नूतन हमको, फिर भी फूल ही बांटे हैं।

आदत से मजबूर “मलय” सम विष के सांझेदार नहीं थे,
किया जिन्दगी सुलूक तुमने, जिसके हम हकदार नहीं थे।

मिलन जुदाई मोह लोभ और द्वेष दंभ दानवता के,
पाया प्रेम विराग भी है, और किस्से कुछ मानवता के।

सब्र और साहस से तोड़े अहम भी, वो दमदार नहीं थे,
किया जिन्दगी सुलूक तुमने, जिसके हम हकदार नहीं थे।

हुये सफल भी और विफलता, यश अपयश सम्मान मिला,
बिना बात रुसवाई पाई, रिश्तों में उन्मान मिला।।

छी न रहे जो हक हैं हमारा, जो वो दावेदार नहीं थे,
किया जिन्दगी सुलूक तुमने…

सहन किये संदेह शूल भी, ऊँच नीच दुनियादारी की
,परम्पराएं रस्में कसमें, और कुरीति की सरदारी भी।
दिल पर कब्जे हुये दर्द के, वो तो हिस्सेदार नहीं थे,
किया जिन्दगी…

रंगे खुशी उल्लास रंग से, बहल गये अपनों के संग से,
दिल को किया हवाले उनके, तनिक भी जो दिलदार नहीं थे।
किया जिन्दगी सुलूक तुमने, जिसके हम हकदार नहीं थे।

परिचय :- प्रीति तिवारी “नमन”
निवासी : गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें....🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *