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मयंक कुमार जैन
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)
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२१००० हजार वर्ष का यह पंचम आरा है उसमें से विक्रम संवत २०२६ वर्ष पूरें हो चुके है। २१०००-२०२६=१८०७४ वर्ष बचें है, पांचवा आरा पूरा होनें में। इस पंचम आरें को कलयुग कहा है। इस युग में जीने की इच्छा से देवता भी धरती पर आना चाहतें है पर जन्म नही ले सकते क्योंकि “कलयुग केवल नाम आधारा, सुमिर सुमिर नर उतरे तारा” अगर प्रभु का स्मरण भाव से व केवल नाम का रटन मात्र से इन्सान भव तिर जायेगें। मगर मन इन्सान के पास नही होगा सो देवता धरती पर आकर क्या करेंगें। साल बितते वक्त नही लगता। समय जैसे पंख लगाकर बैठा है, पलक छपकतें ही बीतता जा रहा है और हमारी मात्र १०० वर्ष की आयु कहाँ बीत जाती है इन्सानों को पता भी नही चलता। ८४ लाख अवतारों में जन्म लेने के बाद ऐसा दुर्लभ मानव भव हमें भाग्य से मिलता है, और अगर इस भव में आकर मानव होने का महत्व नही समझा तो मनुष्य और पशुओं मे कोई अन्तर नही रह जायेगा। जीवन को सार्थक बनाना ही मनुष्यों का प्रथम कर्तव्य है। अब इस कलयुग के अन्तिम पड़ाव में हम पंहुच चुकें है। युग परिवर्तन के साथ-साथ इस धरती पर कई परिवर्तन होगें जो मनुष्य खुद ही महसुस करेंगे, सिर्फ जैन धर्म कें शास्त्रों में जो सच्चाई गणधरों के द्वारा लिखी जाती है वो कभी गलत नही होती सों शास्त्र पर विश्वास रखनें वाले प्रत्येक जीव अपना उद्धार खुद ही कर सकतें है इसमे कोई दोहराय नही, आईये आज जानतें है इस धरती पर आने वाले समय में क्या-क्या परिवर्तन होगें और इस धरती का विनाश कैसे होगा। कौन बचेगा और नई सृष्टि का निर्माण किस प्रकार होगा? बडें विचारणीय प्रश्न है? जानिए।
प॔चम आरें में प्रगट होनें वालें ३५ बोल
१) शहर गामड़ा जैसे होगें
२) गामड़ें श्मशान जैसे होगें
३) सुखीजन निर्लज्ज बनेंगें
४) कुलवान नारीयां वेश्या जैसी बनेगी
५) साधु कषायवंत होगें
६) राजा यमदंड जैसे होगें
७) कुटुंबीजन दास सरीखें होगें
८) प्रधानो लोभी सरीखें होगे
९) पुत्रों स्वच्छन्दाचारी होगें
१०) शिष्य गुरु का अपमान करनें और सामनें बोलनें वालें होगें
११) दुर्जन पुरुष सुखी होगें
१२) सज्जन पुरुष दुःखी होगें
१३) देश दुकाल की समस्या सें घिरा होगा
१४) पृथ्वी खराब तत्वों, दुष्ट तत्वों से आकुल व्याकुल होगी
१५) ब्राम्हण अस्वाध्यायी अर्थ लुब्ध बनेगें, विद्या का व्यापार होगा
१६) साधुओं गुरु की निश्रा में नहीं रहेंगें
१७) समकित दृष्टिदेव और मनुष्य अल्प बल वालें होगें
१८) मनुष्य कों देव कें दर्शन नहीं होगें
१९) गोरस रसहीन-कस्तुरी आदि वर्ण प्रभावहीन होगें
२०) विद्या, मंत्रों तथा औषधीयों का प्रभाव अल्प होगा
२१) बल, धन, आयुष्यहीन होगें
२२) मासकल्प योग्य क्षैत्र नही रहेंगें
२३) श्रावक की ग्यारह प्रतिमा का विच्छेद होगा
२४) आचार्यों शिष्यों कों नही पढ़ाएगें
२५) शिष्य कलह और लड़ाई करनेंवालें होगें
२६) मुंडन करने वाले साधु कम होगें दीक्षा लेगें, पर पालन कम करनें वालें होगें
२७) आचार्यों अपनी-अपनी अलग समाचारी प्रगट करनेंवालें होगें
२८) म्लेच्छों (मोगल) कें राज्य बलवान होगें
२९) आर्यदेश कें राजाओं अल्प बलवालें होगें
३०) मिथ्यादृष्टी देव बलवान होगें
३१) झूठ-कपट का बोल बाला होगा और बढ़ता जायेगा
३२) सत्यबोलनें वालें की हार होगी सत्य बोलना निष्फल होगा
३३) अनिती करनें वालें लोगों की आपस में एक दुसरें से खूब बनेगी
३४) धर्म करनें वालों को सम्पूर्णं सफलता नही मिलेगी
३५) किसी के लग्न किसी के भी साथ होगें जाती-पाती का कोई भेदभाव ही नहीं रहेगा
अभी पंचम आरा चालु हों चुका है पांचवा आरें के अंत में….
१:- पंचम आरें कें अंत में आचार्य श्री दुप्पसहसूरी ओर साध्वी श्री फाल्गुनी होंगे
२:- श्रावक श्री नागील ओर श्राविका श्री सत्यकी होगी
३:- राजा श्री विमलवाहन और शास्त्र दश वैकालिक सूत्र बचेगा
४:- प्रधान श्री सुमुख होगा
५:- अग्नि की बारीश होगी
भगवान “श्रीमहावीर स्वामीजी” नें कहा है कि पंचमआरें कें अंत मे अंतिम साधु “आचार्य श्री दुप्पसहसूरी, और अंतिम “श्रावक श्रीनागील”, और अंतिम “श्रीसत्यकी” और अंतिम “साध्वी श्री फाल्गुश्री” होगी, आचार्य श्रीदुप्पसहसूरी की आत्मा सम्यक्त्व धारण करेगी, जो इस पंचमआरें के अंत में जन्म लेनेवाली एक मात्र सम्यक्त्व धारी आत्मा होगी, आचार्य श्री दुप्पसहसूरी” कें कालधर्म होनें के पश्चात श्रावक श्रीनागील” का मृत्यु होगा, उसकें बाद साध्वी श्री फाल्गुश्री” का कालधर्म होगा ओर अंत में “श्राविका श्री सत्यकी” का मृत्यु होगी इसी कें साथ प्रभु श्री महावीर स्वामी” के शासन का अंत होगा। प्रभु का अवतरण सिर्फ धर्म कें रक्षार्थ ही होता है जो धर्म की रक्षार्थ युगों-युगों से जन्म लेते आऐ है अभी हम सब प्रभु महावीर स्वामीजी कें शासनकाल में जीवनयापन कर रहें है । सब धर्मो का विच्छेद हो जायेगा, सिर्फ जैनधर्म ही बचेगा ओर अंत में इस धर्म का भी विच्छेद हो जायेंगा, उसी कें साथ ये पृथ्वी पर भयकंर परिवर्तन होगा। इसलिए ऐ महामानवों धर्म की रक्षाकरों, धर्म हम सब की रक्षा करनें वाला होगा। जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ भी लिखनें में आया हो तो मिच्छामी दुक्कड़म ….
परिचय :- मयंक कुमार जैन
निवासी : अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)
सम्प्रति : मंगलायतन विश्व विद्यालय अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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