अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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अष्टभुजी हैं दुर्गा माता,
तू सहस्त्र भुज धारी।
तेरी गाथा लिखना मुश्किल,
तू पृथ्वी से भारी।तू जीवन आधार सभी का,
तू है सबसे प्यारी।
हर युग से तू रही सीखती,
तेरी महिमा न्यारी।शिव शंकर से सीखा उसने,
गरल कंठ में धरना।
सीखा माता पार्वती से,
कठिन तपस्या करना।दशरथ नंदन से सीखा है,
सुख दुख में सम रहना।
सीखा भूमि सुता से उसने,
लिखा भाग्य में सहना।नटनगर से सीखा उसने,
कर्म करें बस अपना।
केवल प्रभु की शरण सत्य है,
और जगत है सपना।बरसाने वाली से सीखा,
खुद बन जाना राधा।
राधा में है कृष्ण समाया,
और कृष्ण में राधा।लक्ष्मीनारायण से सीखा,
बहु अवतारी होना।
तज बैकुंठ, धरा पर जाकर,
नर संसारी होना।हनुमान से सीखा उसने,
काम प्रभु के आना।
ऊँचा लक्ष्य रखें जीवन का,
प्रभु पद प्रीति लगाना।सीता उर्मिल से ही सीखा,
पतिव्रत धर्म निभाना।
सानुकूल हो पति के हरदम,
पग पग साथ निभाना।आसमान से सीखा उसने,
ऊँचाई पा जाना।
अपने सदाचरण से सबके,
मन पर ही छा जाना।सीख धरा से धारण करना,
ममता धारण करती।
सूने मानव के आँगन में,
बस खुशियाँ ही भरती।नारी उमा, रमा, ब्रह्माणी,
तेरी महिमा न्यारी।
तेरे त्याग समर्पण से ही,
लगती दुनिया प्यारी।तू गहरी अथाह सागर सी,
तेरी महिमा गाऊँ।
वन्दनीय है तू माता सी,
नित नित शीश झुकाऊँ।
परिचय :– अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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