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ताड़न की अधिकारी

डॉ. निरुपमा नागर
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर होने वाले एक कार्यक्रम में मैं रचना पाठ के लिए आमंत्रित की गई थी। वहां जाने के लिए तैयार होते हुए ही सोच रही थी कि मुझे अपनी कौन सी रचना सुनानी चाहिए। कभी-कभी स्वांत: सुखाय कविताएं मैं लिखती हूं, मगर मंच से सुनाने का पहला अवसर था अतः बहुत उत्साहित थी।
तभी गुस्से से चिल्लाते हुए विनोद की आवाज सुनाई दी। “अरे ! कहां हो भाई! कितनी ‌देर से आवाज लगा रहा हूं।”
आवाज़ सुनकर मैं तैयार होते हुए रुक गई।
बोलो क्या बात है?
“तुमको कोई होश है? महिला दिवस, महिला दिवस बस!
क्या है यह महिला दिवस !
तुम औरतें भी ना !
पता नहीं कौन सा फितूर सवार है !
घर के काम-काज तो ठीक से हो नहीं पाते। चलीं हैं महिला दिवस मनाने।
तुलसीदास जी ने सही कहा है-
ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी
सब ताड़न के अधिकारी।।
यह सुनते ही सासु मां, जो पास ही सोफे पर बैठी सब सुन रही थीं, बोल पड़ीं- ‘अरे !चुप भी कर। अपना अधूरा ज्ञान मत बघार। तुलसीदास जी ने तो इन सबके बारे में कहा है कि ये सब देखभाल के अधिकारी हैं। अगर उनका मतलब त्रास देने से होता तो अधिकारी कैसे कहते !
आज मेरी बहू को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला है, वह ताड़ने की अधिकारी है। तू खुद उसे संभालकर ले जा और वहींं रुक कर वापस साथ ले कर आना। उसकी देखभाल करना तेरा फ़र्ज़ है।
इतना कहकर सासु मां ने मुझे गले लगा कर कहा हैप्पी वुमन्स डे बेटा।
यह सब सुन कर मेरा वुमन्स डे तो बड़े हर्षोल्लास के साथ मन गया।

परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर
निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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