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मन की पीड़ा

आलोक रंजन त्रिपाठी “इंदौरवी”
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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जब मन की पीड़ा उभरी तो मैंने उसे लगाम दिया है
कठिन पलों में मैंने खुद को एक नई पहचान दिया है

पीकर के अपमान घूंट का मैंने संयम पाला है
दूर दर्शिता के आंगन में स्वयं हृदय को ढाला है
विचलित होकर जब दुनिया के लोग यहां घबराते हैं
तब हम अपनी जीवन की गाथा लिखकर उन्हें सुनाते हैं
जीवन मुल्यों की धूरी पर जब जब भी आघात हुआ है
और निखरकर जीनें के साहस भी एहसास हुआ है
रिश्तों के ब्वहारिकता में मौकों को सम्मान दिया है
जब मन….

जब तुम मुझे समझ पाओगे और अधिक इतराओगे
मेरे भावों की सरिता में तब तुम और नहाओगे
प्रेम नहीं ये नैतिकता है इसका मूल्य समझना होगा
उछली उछली भावुकता से तुमको आज उभरना होगा
गहन विचारों में डूबी जब सोच निकलकर आयेगी
तब इस प्रेम कहानी की सच्चाई तुमको भायेगी
समझ सकोगे शायद मैंने तुमको क्या संधान दिया है
जब मन….

कितनी और परीक्षाओं से हमको और उबरना होगा
जीवन के इस अंतस्तल में कितना और उतरना होगा
युग युग बीते हम क्या समझे अपने कर्तव्यों का फन
कितनी और का विवशता लेकर दुख पाएगा मेरा मन
जिस पथ पर चलकर आया हूं अब तक उसको कैसे भूलू
जी करता है कर्तव्यों के शिखरों को जाकर छूलूं
यही कृष्ण ने सारे जग को गीता जी का ज्ञान दिया है
जब मन….

परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी “इंदौरवी”
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य)
लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि
विशेष : आध्यात्मिक प्रवक्ता एस्ट्रोलॉजर
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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