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काली चामुण्डा और पॉंच भूत

नितिन राघव
बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)

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पिछले दिनों की बात है। जब चाचा का धौलाने से फोन आया कि तुम्हारी चाची पिछले कुछ दिनों से बीमार है। मैंने यहां और आस पास के सभी डॉक्टरों को दिखा लिया परन्तु कोई आराम नहीं हो रहा है। मैंने पूछा, “डॉक्टरों ने क्या तकलीफ़ बताई है?” वह बोलें डॉक्टरों के कोई बिमारी समझ ही नहीं आ रही है। वो तो केवल दवा देकर ये कह देते हैं कि शायद इस दवा से आराम हो जाए। कल गाजियाबाद एक बडे अस्पताल में दिखा कर लगाऊंगा। मैंने कहा कि डॉक्टर को सारी तकलीफ अच्छे से बता देना ताकि वो अच्छी दवा दे सके। चाचा बोले कि बता तो दूंगा परन्तु कुछ बातें तो ऐसी है, जिन्हें बताने में ऐसा लगता है कि कहीं डॉक्टर सुनकर हंसी ना बनाएं। मैंने कहा, “हंसी क्यू बनाएंगे?” चाचा बोले कि रात के समय इसे सांस लेने में परेशानी होती है। यहां तक तो ठीक है परन्तु इसी के साथ ही ये अपने ही गले को जोर से दबाती है और अपने आप से ही अकेले बात करती हैं। यदि तुम्हारी अम्मा इसके पास जाती है तो ये उन्हें पास देखकर और ज्यादा गुस्से में आ जाती है और उन्हें गालियां देने लगती हैं। फिर बेहोश हो जाती है। जब होश में आती है तो बिल्कुल ठीक रहती है। सभी से अच्छे से बात करती हैं। अगले दिन चाचा चाची को गाजियाबाद लेकर गये। डॉक्टर ने अनेक टेस्ट कराए परन्तु टेस्ट में कुछ नहीं आया। डॉक्टर ने अंदाजे से ही दवा दे दी। दो तीन दिन तक दवा खाई परन्तु कोई भी फायदा नहीं हुआ और पहले से भी ज्यादा परेशानी होने लगी।
कुछ पड़ोसी बोले कि दवाई फायदा नहीं कर रही तो किसी बाबा को दिखा लो। हमें तो ऊपर का चक्कर लगता है। मरता क्या ना करता? चाचा चाची को बाबा के पास लेकर गये। ज्यों ही वह उस बाबा के गांव के पास पहुंचे त्यों ही चाची चलती मोटरसाइकिल से कूदने को तैयार हो गई। चाचा ने एक दम से मोटरसाइकिल रोकी। बडी मुश्किल से वह उन्हें बाबा के पास लेकर पहुंचे। बाबा को सारी बात बताई गई। बाबा ने कहा कि इनके ऊपर आत्माओं का साया है। मैं कुछ विधि बताता हूं। घर जाकर ये करना और सारी आत्माएं भाग जायेगी। इतने से काम के लिए दो हजार रुपए ले लिए। चाचा ने सारे विधि विधान किए परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ। अगले दिन चाचा दूसरे बाबा पर लेकर गये। वहां पर इतनी भीड़ की सुबह पहुंचने पर भी शाम को नम्बर आया। यहां पर बाबा ने चाची के ऊपर नींबू घुमाया और कहा कि पांच हजार रुपए मेरे चरणों में रख दो। घर जाते जाते सब ठीक हो जाएगा परन्तु अभी भी कोई फायदा नहीं हुआ। इसी प्रकार वह अनेक बाबाओं के पास गये परन्तु किसी से कोई फायदा नहीं हुआ और हजारों रूपए खर्च हो गये। चाची की तबीयत और बिगड़ रही थी। चाची के ऊपर भूत थे या नहीं इसका तो पता नहीं परन्तु जब उनकी लड़की मोबाइल में हनुमान चालीसा चलाकर उनके पास रख देती थी तो वह गुस्से में आ जाती थी तथा मोबाइल को फैंककर जमीन में मारती थी।
चाचा का दोबारा फोन आया और उन्होंने मुझे सारी कहानी बताई। मैं भी किसी बाबा के बारे में सोचने लगा। अचानक मुझे याद आया कि दो महीने पहले मेरे दोस्त के साथ भी कुछ ऐसी ही परेशानी हुई थी और उसे किसी बाबा ने ही ठीक किया था। मैंने अपने दोस्त हरेंद्र को फोन किया। उसने मुझे बाबा का नाम हरिया और गांव का नाम जसैर बताया। मैं बाबा के घर गया और उन्हें सारी कहानी बताई। बाबा ने कहा कि जो बिमार है, उसका नाम बताओ। मैंने कहा कि उनका नाम संध्या है। बाबा ने अपनी आंखें बंद कर ली और कुछ देर शांत रहे फिर बोले संध्या के पति का नाम बताओ। मैंने कहा कि उनका नाम वीरपाल है। बाबा ने कहा कि संध्या के ऊपर भूतों का साया है और उसे रात को सांस लेने में परेशानी होती है तथा अपना गला दबाने लगती है और अजीब अजीब सी बातें करती हैं तथा अपनी सांस को गालियां तक देती है। उनकी बात सुनकर मैं चौंक गया। मैंने कहा कि बाबा भूतों को भगाने का कोई उपाय तो बताओ। बाबा बोले कि मैं स्वयं तुम्हारे घर चलूंगा और चामुण्डा माता की पूजा कर अखाड़ा बजाऊंगा। मैंने कहा कि चाची तो घर नहीं है। वो तो चाचा के साथ नौकरी पर धौलाने में है। बाबा बोले कि कल उन्हें अपने घर बुलवा लो। मैंने चाचा को बताया और वो उन्हें अगले ही दिन अपने दोस्त की कार से गांव ले आए। मैं शाम को बाबा को लेने गया।
हरिया बाबा और उनका चेला मेरे साथ आ गये। वह चाची के पास गये। चाची उन्हें देखकर हंसने लगी। बाबा बोले,”अरे! अभी मत हंस कुछ देर में, मैं आसन लगाऊंगा।” तू उस पर बैठना तब मैं अपनी कहूंगा और तू अपनी कहना। हम सब घर वाले सोच रहे थे कि वो चाची से बात कर रहे हैं या किसी भूत से। दोनों ने पहले खाना खाया और फिर काली का खप्पर भरा जिसमें पांच तरह की मिठाई और एक शराब की बोतल रखी। चाची के सिर के ऊपर घुमाया और फिर गांव के शमशान में रख आएं। वापस आकर देवी की जोत जलाई और आसन लगाकर बैठ गये। एक आसन चाची के लिए भी लगाया। फिर पीली सरसों ली और उसे अभिमन्त्रित करके चाची के आसन के ऊपर और नीचे बिखैर दिया। उसमें से कुछ मुझे दि और बोले इसे पूरे घर में बिखैर दो। मैंने ऐसा ही किया। बाबा ने कहा कि संध्या को बाल खोलकर मेरे पास ले आओ। मैं चाची को बाबा के पास लेकर आया। सामने देवी की ज्योत जली हुई थी। चाची जोर जोर से हंसने लगी। बाबा ने चाची से कहा कि हंस मत देवी की ज्योत के आगे सर झुका। चाची हंसते हुए बोली कि मैं नहीं झुकाऊंगी। बाबा ने कुछ मंत्र पढ़ें और चाची धीरे_धीरे झुकते चली गई और देवी के सामने धोक लगा दी। वह बेहोश हो गई। हरिया बाबा ढोलक बजाते हुए देवी का भजन गाने लगे। ज्यों ही उन्होंने भजन शुरू किया त्योही चाची होश में आ गई और घूटनो के बल बैठकर अपने सर को गोल-गोल घुमाने लगी। कुछ ही सेकंड में उनके सिर घुमाने की रफ्तार बहुत तेज हो गई तथा उनके बाल छत के पंखे से भी तेज घुमने लगे। अचानक बाबा कहते कि अपने हाथ पीछे कमर पर ले जा और एक हाथ से दूसरे हाथ को पकड़ ले। चाची ऐसा ही करती और बाबा कहते कि चल कस दे मुश्क! तभी चाची घुटनों पर बेठै हुए ही अपना सर जोत के आगे जमीन पर टिका देती।
बाबा उनकी गर्दन पर चिमटा रखकर कहते कि हिंदू के लिए राम राम! मुस्लिम के लिए सलाम! बोल राम-राम! या सलाम! चाची के मुंह से आदमी की आवाज में हकलाते हुए एक आदमी बोला कि राम-राम! बाबा ने पूछा कि तेरा नाम क्या है? उसने बताया कि विजयपाल। इतना सुनते ही हम सब चौंक गए क्योंकि वो हमारे बाबा थे जो चाची के मुंह से हकलाते हुए बोल रहे थे। हमें फिर याद आया कि जब हमारे बाबा मरे थे तो उससे पहले वो हकलाने लगें थे। हरिया बाबा ने ये पता चलते ही की वो हमारे बाबा है। उनसे ज्यादा सवाल नहीं किए। उनसे कहा कि जल्दी से लट में आओ और लट निकाल कर दो। चाची बेहोश थी फिर भी उनके हाथ स्वयं उठने लगे और हाथों ने चाची के सिर से एक लट निकालकर अलग कर दी। हरिया बाबा ने उस लट को काटकर एक कागज जिस पर उसने विजयपाल लिखा था, में रखकर कागज की पूडियां बना दी।
बाबा ने फिर भजन गाना शुरू कर दिया और चाची फिर से सिर घुमाने लगी। उन्होंने अपना सिर दूसरी बार ज्योत के सामने जमीन पर टिका दिया। हरिया बाबा के पूछने पर दूसरे भूत ने भी कहा,”राम-राम!” उसने बताया कि मैं संध्या की बहन हूं। बाबा ने पूछा,” तू इस पर कब और कहां से आई?” वह बोली कि मैं सिडियो से गिरकर मर गई थी। जब ये शादी में मेरे यहां आई थी तब मैं इसके शरीर में आ गई।
बाबा ने उसे भी पकड़ लिया। तीसरा भूत बोला,” सलाम!” उससे बाबा ने बहुत बार उसका नाम पूछा पर उसने नहीं बताया। बाबा बोले,”तू देख क्या रही है? चल मार इसके भाले। बाबा के इतना कहते ही वो चिल्लाने लगा और बोला मेरा नाम सलमान है। बाबा ने पूछा, “तेरे पीछे कौन खड़ा है? वो बोला, “काली।” बाबा ने कहा, “कौन सी काली?” उसने बताया, “मरकट काली।” हम सब को तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। केवल चाची के मुंह से सलमान की आवाज सुनाई दे रही थी। उसने बताया कि मैं एक सड़क दुघर्टना में मरा था तथा धौलाने के पुल से इसके अंदर प्रवेश कर गया।
चौथे ने तो हमें जन्म मृत्यु का ही पाठ पढा दिया। वह भूतनी थी जो बोली कि मैं संध्या की बचपन की सहेली हूं। मैं और संध्या जब आठवीं कक्षा में पढ़ते थे तो बुखार से मेरी मृत्यु हो गई थी और तभी से मैं इसके अंदर हूं परन्तु आज तक मैंने इसे कोई नुक़सान नहीं पहुंचाया। बाबा बोले कि जल्दी इसके सिर से लट निकाल कर दे। वो बोली,”हां! देती हूं।” वैसे भी मुझे दूसरा जन्म मिलने वाला है और मैं तो इसे छोड़कर खुद ही चली जाऊंगी। हम सोचने लगें कि ये तो बहुत दिनों से चाची के अंदर थी। चाची के विवाह को ही पच्चीस साल हो गए हैं।
अब पांचवें ने अपना नाम वीरेंद्र बताते हुए कहा कि मैं एक लड़की से प्यार करता था। उसने मुझे धोखा दे दिया इसलिए मैं स्कूल में ही फांसी लगाकर मर गया। बाबा बोले,”तू इस के शरीर में क्यूं आया।?” वह गुस्से से बोला कि मैं तो रास्ते पर लेटा था। इसी ने मुझे ठोकर मारी और मैं तभी एक बछडे के अंदर जाकर इसको मारने के लिए इसके पीछे दौड़ा वो तो कुछ लोगों ने इसे बचा लिया। तभी चाचा बोले,” हां! ये बात सही है।” एक दिन तेरी चाची ने मुझे बताया था कि आज एक बछड़ा मेरे पीछे पड गया था, वो तो कुछ लोगों ने मुझे बचा लिया। फिर बाबा ने उसे भी पूडिया में बंद कर लिया।
इसी प्रकार बाबा को ढोलक बजाते, भजन गाते और भूतों को पकड़ते पूरी रात निकल गई। सुबह के छः बज चुके थे। हरिया बाबा बोले कि अब इसके ऊपर कोई भी भूत नहीं है। मैं इसके ऊपर स्वयं देवी चामुण्डा को बुला रहा हूं। ज्यों ही बाबा ने पुनः भजन गाने शुरू किये त्यों ही चाची ने ऐसा सिर घुमाना और जोर जोर से तालियां बजानी शुरू की जैसे तूफ़ान आने पर वृक्ष आंधी के कारण हिलते हैं और बादल आवाज करते हैं। फिर अचानक रूक गयी। वह लम्बी लम्बी सांसे ले रही थी।
बाबा बोले, आ गई, तू। अब गारंटी ले आज के बाद संध्या और इसके परिवार को कोई परेशानी नहीं होगी । तू उनकी रक्षा करेगी। देवी बोली कि ठीक है। बाबा बोले कि तुम्हारे घर में स्वयं देवी चामुण्डा आई बैंठी है। तुम्हें तो इनकी आरती उतारनी चाहिए। हमारी अम्मा ने बड़े प्यार से उनकी आरती उतारी। फिर बाबा बोले कि किसी को कुछ पूछ्ना है तो पूछ लो। मेरी मम्मी बोली, “मेरे शरीर में दर्द क्यू रहता है?” देवी गुस्से से बोली कि तू मेरा प्रसाद चढ़ाना भूले बैठी है। मम्मी ने क्षमा मांगी और कहा कि अब जरुर चढा देगी। फिर मैंने देवी के चरणों में सिर झुकाकर कहा कि मुझे आर्शीवाद दो कि मेरी सरकारी नौकरी लग जाए। उन्होंने मेरे कमर पर बहुत जोर से हाथ मारा। बाबा ने पूछा कि तूने पूरी रात महनत की है। तू बता, “तुझे क्या चाहिए?” तब देवी बोली कि मेरे खिदराबाद मंदिर पर लगातार पांच सोमवार तक संध्या गंगा नहाकर आए और फिर मुझे नहला दे तथा जायफल के हाथ मेरा एक खप्पर भर दे। आज लगभग दो साल हो गए परन्तु आज तक चाची को कोई भी परेशानी नहीं हुई।

परिचय :- नितिन राघव
जन्म तिथि : ०१/०४/२००१
जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर
पिता : श्री कैलाश राघव
माता : श्रीमती मीना देवी
शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम्प्यूटर ओपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट डिप्लोमा, सागर ट्रेनिंग इन्स्टिट्यूट बुलन्दशहर से
कार्य : अध्यापन और साहित्य लेखन
पता : गाँव- सलगवां, तहसील- अनूपशहर जिला- बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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