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जीमणा री याद

आयुषी दाधीच
भीलवाड़ा (राजस्थान)

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मारवाड़ी कविता

इस कविता मे मैने एक गाँव के जीमने को याद करते हुए कुछ अपने विचार लिखने की कोशिश की है ।

(१) आज घणा वक्त पछे
शहर रो जीमणो जीम्यो,
पर जीमणा मे वो बात कोणी
जो पहळा गाँव रा जीमणा मे वेती।
जीमता-जीमता मैने गाँव रा
जीमणा री याद आगी,
कतरा बरस होग्या पेल्ली
जसा जीमणा जीम्या ने।
शहर रा जीमणा मे
वो मजो कोणी
जो गाँव रा
जीमणा मे वेतो।

(एक गाँव रो बालक स्कुल भणवा जावे उ बालक रे मन री दशा को वर्णन है)

ध्यान मु हुन्जो

(२) सुबह रो जीमणो को नुतो आतो
तो मन मे उतल-फुतल मचती,
कि अबे स्कूल जावा की
छुट्टी मारा जीमबा ने…
पर कि करा घर वाला स्कूल भेजता,
अन कहता कि मू
स्कूल मे बुलावा आई जावं,
मै भी स्कूल तो जाता पर
मन भणवां मे न लागतो।
सहेलियाँ ने भी पूछता
थारे जीमबा जाणो की,
आपा सब लारी चाला ला।
शहर रा जीमणा मे
वो मजो कोणी
जो पहला गाँव रा
जीमणा मे वेतो।

(पल्या गाँव मे पुरा मोहल्ला री औरता कि तरऊ लारे जीमबा जाया करती ऊरो वर्णन है।)

हुन्जो जरा..

(३) शाम रा जीमणा की तो
बात ही न्यारी होती,
आका मोहल्ला री लुगाया
और टाबर-टीगंर भैला वेन
पछे लारे जीम्बा जाता।
जीमता वक्त एक बात रो
पूरो ध्यान राखता,
कि कोई पातल माई
नुक्ती रो लाडु नी रख देवे,
वी नुक्ती रा लाडु न
देखन कंटाल छुटतो…
मे तो जीम्बा पुडी दाल
खावा जाता पर,
घर वाला केता की
एक लाडु तो खा
कई पुडी दाल तो
रोज घरे ही खावे।
शहर रा जीमणा मे
वो मजो कोनी,
जो पहला गाँव रा
जीमणा मे वेतो।

परिचय :-  आयुषी दाधीच
शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी
निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान)
उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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