संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा
विद्यासागर जी के कामो से।
कितने जीवो के बच रहे प्राण
उनकी गौ शालाओं से।।जीव हत्या करने वाले अब
स्वयं आ रहे उनकी शरण में।
लेकर आजीवन अहिंसा का व्रत
स्वयं करेंगे उनकी रक्षा अब।
ऐसे त्यागी और तपस्यवी संत
जो स्वयं पैदल चलते है।
और जगह जगह प्राणियों की
रक्षा हेतु भाग्यादोय खुलवाते।।कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा
विद्यासागर जी के कामो से।
कितने जीवो के बच रहे प्राण
उनकी गौ शालाओं से।।मांस मदिरा बेचने वाले अब
स्वयं रोक लगवा रहे।
चारो तरफ अहिंसा का अब
पाठ ये ही लोग पड़ा रहे।
कलयुग को देखो कैसे अब
सतयुग ये लोग बना रहे।
घर घर में सुख शांति का
आचार्यश्री का संदेश पहुंचा रहे।।लगता है जैसे भगवान आदिनाथ
स्वंय अवतार लेकर आ गये।
और छोटे बाबा के रूप में आकर
सब जीवो का उद्दार कर रहे है।
तभी तो बड़े और छोटे बाबा
एक जैसे सबको लग रहे है।
और कलयुग को भी अब
सतयुग जैसा ही मान रहे है।।
कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा
विद्यासागर जी के कामो से।
कितने जीवो के बच रहे प्राण
उनकी गौ शालाओं से।।
परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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