अमिता मराठे
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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नभ में सूर्यास्त की लालीमा छाई थी। धीरे सेअंधकार ने वातावरण को घेर लिया था। सुभाष ऑफिस से आते ही हाथ मुंह धोकर गैलरी में आ खड़ा हुआ। उदासी के बादल अभी छंटे नहीं थे।उसे घर के कोने कोने में बाबूजी का एहसास होता था।
सुहानी उसकी मनःस्थिति समझकर भी विवश थी। सोचती थी शाम का धुंधलका सुबह होते ही दूर हो जाता है। वैसे ही सुभाष के जीवन में आई रिक्तता को भर तो नहीं सकती लेकिन सामान्य करने की कोशिश जरूर करूंगी। मैं उसकी जीवन संगिनी हूं। बाबूजी के एकाएक चले जाने से सुभाष के सभी अरमान लुप्त हो गये थे।
मैं उन्हें पुनः जागरुक करूंगी। बाबूजी की आत्मा भी तो यहीं चाहती थी ना कि सुभाष सरकारी अफसर बनकर देश सेवा करें। ईमानदारी और कर्मठता का प्रदर्शन करें।
“फोन की घंटी बजते ही, सुहानी ने आवाज लगाई।”
“सुभाष जरा फ़ोन उठा लो मैं चाय नाश्ता बनाने में व्यस्त हूं।”
सुभाष जानता था अब प्रेरणा से भरें वचन, उत्साहित करने वाली मुक्त हंसी और प्यार भरा वह उच्चारण “हां बोल बेटा सब्बू” सुनाई नहीं देगा।वह वैसे मौन खड़े रहें। “अरे, फोन बज रहा है भाई” कहते सुहानी ही बाहर आकर फोन रिसीव कर चहचहाकर हंस पड़ी।
बोल, बिट्टू कैसा है अब तू? अभी खाना खा लिया? देख होस्टल के नियम के अनुसार चलना है। कोई शिक़ायत नहीं आनी चाहिए। दसवीं बोर्ड की परीक्षा है। लापरवाही नहीं करना।
हां बिट्टू …!, “तुझे भी पापा की चिन्ता सता रही है ना”। मैं हूं ना यहां तू तेरी चिंता कर। देख होनी को कोई टाल नहीं सकता। तेरे पापा जरा खुलकर बातें करें तो सब हल्का हो जायेगा। अच्छा तो अब मैं फोन रखती हूं। पापा भी तुम्हें फोन लगायेंगे। बाॅय, बिट्टू, “कहते फोन रखकर, सुहानी किचन में चली गई।”
बाबूजी पिता से ज्यादा सुभाष के भरोसेमंद मित्र थे। माँ को तो देखा हुआ याद ही नहीं आता था। कुछ माह स्तन की ऊष्मा का आनन्द लिया था। बाबूजी कहते थे, “तेरी माँ बहुत कोमल, सुन्दर और नाज़ुक थी। तू स्वस्थ और भारी था। लहू की बीमारी में वह अचानक बिखर गई थी।” मैंने दिल मजबूत कर तेरे लिए फौलाद बन गया। लोग दूसरी शादी के लिए राजी करने लगे, लेकिन बाबूजी कहने लगे माँ का प्यार मुझे ही देना था। तेरी मां ने आखिरी समय कहा था, “तुम्हारी गोद में रखा है किसी दूसरी गोद में नहीं डालना इसे।’
शादी के बाद तो सुहानी के घरवाले, रिश्तेदारों और सबको सुभाष के रिश्तेदारों ने पिता-पुत्र के प्रगाढ़ संबंध का वर्णन इतना किया था कि सभी प्रभावित हो गये थे। सुहानी को भी बाबूजी ने प्यार से बेटी समझा बहू नहीं।
सुहानी ने टेबल पर चाय नाश्ता लगाते हुए सुभाष को आवाज लगाई। लेकिन वे लाॅन में घुमते हुए बुजुर्गो को देखने में मग्न हो गये थे।
अंत में वह गैलरी में आई, और बोली सुभाष मन को सम्हालना पड़ता है। बाबूजी को गये दो माह हो गये। वे भी अपना नया सफ़र अच्छी तरह सबको खुशियां देते हुए बिताए ऐसा सोचो, कहते सुहानी ने हाथ पकड़कर सुभाष को अन्दर ले आई।
हां, “आज भी बाबूजी से बहुत बातें करने का मन करता है” सुभाष भाव लहरियों में मायूस होने लगें तो तुरन्त सुहानी ने अपनी बांहों में भर लिया।”
देखो सुभाष, माता-पिता नहीं होने पर भी उनका साथ अप्रत्यक्ष में भी बना रहता है। अपनी संतानों को आश्रय देते रहते हैं। यह अनुभव तुम्हें भी होगा। बस उनकी यादों को दुःख में नहीं ख़ुशी में बदलो। सुहानी ने सुभाष की आंखों से झरते आंसू पोंछते हुए कहा।
सुभाष ने भी महसूस किया बाबूजी का स्नेहिल स्पर्श उसे थपथपा रहा है। सुहानी को चूमते हुए उसने देखा सुहानी प्रेम स्वरुप देवी लग रही थी, उसे जीना है बिट्टू के लिए, सुहानी के लिए, जैसे बाबूजी आख़री तक मेरे लिए और मेरे ही बने रहे थे। उनका स्नेह पारदर्शी था।
परिचय :- अमिता मराठे
निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश
शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है।
वर्तमान में मूक बधिर संगठन द्वारा संचालित आई.डी. बी.ए. की मानद सचिव।
४५ वर्ष पहले मूक बधिर महिलाओं व अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आकांक्षा व्यवसाय केंद्र की स्थापना की। आपका एकमात्र यही ध्येय था कि महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके। अब तक आपके इंस्टिट्यूट से हजारों महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं और खुद का व्यवसाय कर रही हैं।
शपथ : मैं आगे भी आना महिला शक्ति के लिए कार्य करती रहूंगी।
प्रकाशन :
१ जीवन मूल्यों के प्रेरक प्रसंग
२ नई दिशा
३ मनोगत लघुकथा संग्रह अन्य पत्र पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में कहानी, लघुकथा, संस्मरण, निबंध, आलेख कविताएं प्रकाशित राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था जलधारा में सक्रिय।
सम्मान :
* मानव कल्याण सम्मान, नई दिल्ली
* मालव शिक्षा समिति की ओर से सम्मानित
* श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
* मध्यप्रदेश बधिर महिला संघ की ओर से सम्मानित
* लेखन के क्षेत्र में अनेक सम्मान पत्र
* साहित्यकारों की श्रेणी में सम्मानित आदि
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