भुवनेश नौडियाल
पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
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जीना और मरना, ये जीवन के दो पहलू हैं। इस संसार में जिसने जन्म लिया है, उसे मरना तो है ही, यह तो जगत विदित है। जीना और मरना यह तो ईश्वर के हाथों में है, ना तो मेरे हाथों में है, और ना दूसरे के हाथों में, किंतु माध्यम मैं भी बन सकता हूं, और कोई दूसरा भी। पर यह थोड़ी है, कि हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए किसी भी प्राणी को पीड़ा पहुंचाएं, यह तो न्याय संगत नहीं है। यह तो आपके ऊपर है, कि आप किस प्रकार का जीवन जीना चाहते हैं। अपने सपनों का संसार या इस कहानी के जैसे- यह कहानी ऐसे किसान की है, जो अपनी जिंदगी से हार मान चुका है, और आगे जीना नही चाहता है। मानों की संसार के सारे दुख इसी को प्राप्त हुए हो, इस कारण से वह अपने बच्चे को जन्म लेने से पहले ही मार देना चाहता है। पर उसे क्या पता जो भाग्य में लिखा है, वही घटित होता है हम तो निमित्त मात्र हैं उस कार्य को पूरा करने के लिए जिसे हमें पूरा करना है।
गांव का दृश्य- चार-पांच झोपड़ियां, जो जगह-जगह से जर्जर अवस्था में है, ऐसे लगता है वर्षा आते ही झोपड़ियाँ कहीं अदृश्य हो जाएँगी। कुछ बच्चे सड़क पर खेलते हुए। कुछ महिलाएं कुँए से पानी निकालती हुए। एक घर आता हुआ किसान, जिसके चहरे में दुःख के भाव दिखाई दे रहे हैं। यही कहानी का नायक है।
किसान– जिसके घर में चार जन थे। उस व्यक्ति की पत्नी दो बच्चे जिसमें एक लड़का और एक लड़की थी। यह किसान दिन रात मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करता था। व्यक्ति अपने परिवार से बहुत प्यार करता था, किंतु अपनी गरीबी को देखकर उसे बहुत दुख होता था ना जाने इस प्रकाशमान संसार में मुझ जैसे लोगों को अंधकार की चादर क्यों मिल जाती है। मैं नहीं जानता पर इतना जानता हूं, कि इस संसार में हम जैसे लोगों के लिए कोई अस्थान नहीं है, यह इस जगत का दुर्भाग्य है, यह हम लोगों का…………..। इस प्रकार के विचारों को मथते हुए वह अपने घर की ओर चल दिया, घर पहुँचते ही उसने अपने बेटे को आवाज लगाई।
किसान – हे गुड्डू, हे गुड्डू कहाँ मर गया कामचोर |
गुड्डू – जी पिताजी |
किसान – जा अपनी अम्मा को बुला ला |
गुड्डू – ठीक है, पिताजी अभी बुला लाता हूं |
थोड़ी देर बाद व्यक्ति झुंझलाते हुए अपनी बेटी को बुलाता है |
किसान – चिंकी ओ चिंकी आवाज में भारीपन था |
चिंकी – दौडती और सहमी हुए आवाज में जी, जी पिताजी |
व्यक्ति – जा, अपनी अम्मा को बुला ला | मैंने गुड्डू को भी भेजा है, पर कामचोर कहां चला गया है, पता नहीं फिर विचारों में खोते हुए |
पीछे से गुड्डू की आवाज चिल्लाते हुए पिताजी, पिताजी
व्यक्ति – क्यों चिल्ला रहा है, क्या आज खाना नही खाया |
गुड्डू – करुण स्वर में मां, मां, मां नेत्रों से आंसू की धारा बहती हुई |
व्यक्ति – देखे बिना क्या माँ, माँ लगा हुआ है| पूरी बात तो बता जरा |
गुड्डू – रोते हुए, मां जमीन पर लेटी हुई है| और कुछ भी नहीं बोल रही है|
व्यक्ति – डर के कारण मुंह से ठीक से शब्द नहीं निकलते भाग्यवा…. भाग्यवा… (भाग्यवान)
समीप में पहुंचते ही| गुड्डू की अम्मा – गुड्डू की अम्मा क्या हुआ, हाथ पैरों को सहलाते हुए |
व्यक्ति – गुड्डू जरा पानी लाना |
गुड्डू – ठीक है, पिताजी |
व्यक्ति – चिंकी जाओ और वैद्यमाता को बुला लेके आओ |
चिंकी वैद्यमाता को बुलाने के लिए कमरे से बाहर चली जाती है |
वैद्यमाता का परिवेश –
वैद्यमाता – ६५ साल की बुढ़िया औरत हटो-हटो मुझे देखने दो , कुछ समय तक औरत को देखते हुए हाथ पकड़ते हुए| आंखों को देखते हुए,|
वैद्यमाता – गुड्डू के पिता जी जरा यहां आइए |
व्यक्ति – क्या हुआ? वैद्यमाता
वैद्यमाता- कुछ नहीं- कुछ नहीं थोड़ी सी शारीरिक कमजोरी आ गई है | अच्छे से देखभाल कीजिए, यह मां बनने वाली है|
व्यक्ति – विस्मय से मां बनने वाली है |
वैद्यमाता – है | माँ बनने वाली है, अभी दूसरा महीना चल रहा है |
व्यक्ति – नहीं-नहीं मुझे यह बच्चा नहीं चाहिए |
वैद्यमाता – क्यों? क्यों नहीं चाहिए बच्चा | बच्चे तो ईश्वर का अंश होते हैं, यह पूरा संसार ईश्वर की देन है | इसे ईश्वर का प्रसाद मानो |
व्यक्ति- मैं इस जिम्मेदारी को अपने कंधों पर नहीं लाद सकता | मेरा जीवन बहुत संघर्ष का है, मैं कठिनता से अपने परिवार का भरण पोषण कर पाता हूं, कई दिनों से भरपेट खाना नसीब नहीं हुआ है | यदि इस जिम्मेदारी को लेता हूं, तो कई दिनों तक खाली पेट ही सोना पड़ेगा| क्या आप यही चाहती हैं |
गुड्डू – कमरे के कोने पर बैठा, सब कुछ सुन रहा है|
चिंकी – माँ का सहलाते हुए सारी बातें सुन रही है |
वैद्यमाता – विदीर्ण हृदय और रुदन वाणी से व्यक्ति को पूछा, इस बच्चे का क्या दोष है |
व्यक्ति – वैद्यमाता जिसने अभी तक जन्म नहीं लिया, उसके लिए इतना चिंतित क्यों हो| मैं चाहता हूं कि यह गर्भ में ही अपने प्राण त्याग दें, नहीं तो जन्म के समय मारना पड़ेगा | वैद्यमाता, यह गरीब के घर में जन्म लेना चाहता है, यही इसका दोष है |
वैद्यमाता – व्यक्ति को उद्देश्य करके इसी लिए ईश्वर ने माता को पहले स्थान पर रखा है, और पिता को दूसरे स्थान पर किंतु तेरे जैसे पिता को किस स्थान पर रखना चाहिए था, यदि यह भी बता देता तो ईश्वर की बड़ी कृपा होती वैद्यमाता के रोती हुई |
महिला – चेतना अवस्था में आती है |
चिंकी- वैद्य माता मां को होश आ रहा है |
वैद्यमाता – महिला का हाथ को स्पर्श करते हुए, माथे को सहलाते हुए, कहती है सब कुछ ठीक है, बेटी
महिला – अश्रु की धारा नेत्रों से बहती हुई, संत्रस्त वाणी से व्यक्ति को कहा – हम दोनों को मार दो |
व्यक्ति – अपनी पत्नी के द्वारा इस प्रकार के वचन सुनकर व्यक्ति के पैरों तले जमीन खिसक गई|
वह चुपचाप कमरे से बाहर आकर एक कोने पर बैठ गया, और अपनी पत्नी के उन वचनों को याद करके रोने लगा| रोते-रोते अपने आपसे कहने लगा, क्या मैं इतना बुरा हूं इस संसार में मुझे दिया ही क्या है| मैं तो अपने परिवार की खुशी देखना चाहता हूं, यदि मेरा सोचना और करना यह पाप है तो मैं यहां पाप जरूर करूंगा | यदि इस बच्चे ने जन्म ले लिया तो इसे दुख के अलावा और कुछ प्राप्त नहीं होगा | मैं नहीं चाहता हूं, कि जिस प्रकार का जीवन मैं भोग रहा हूं, उसी प्रकार का जीवन यह भोगे, इस तरह विचार कर वह ईश्वर को याद करते हुए रोने लगता है |
वैद्यमाता – व्यक्ति को अंदर से आवाज लगाती हुई | हे जी सुनते हो |
व्यक्ति – अचानक अंदर से आए हुए आवाज को सुनकर रोते-रोते- हुए सुन रहा हूं |
वैद्यमाता – बेटा अंदर आओ, आपसे बात करनी है|
व्यक्ति – अंदर जाकर, हां वैद्यमाता बोलिए
वैद्यमाता – अब मैं अपने घर जाती हूं, वहां मुन्ना अकेला है|
व्यक्ति – जी ठीक है. आपका बहुत धन्यवाद |
वैद्यमाता – कमरे से बाहर चली जाती है |
व्यक्ति – अपनी पत्नी की ओर देखते हुए, भाग्यवान यह जीवन कष्ट पूर्ण है| मैं नहीं चाहता कि हमारा बच्चा इस कष्ट को सहे |
पत्नी – गुस्से से मुंह फेर देती है |
व्यक्ति – दोनों बच्चों को बाहर जाने का आदेश देता है |
दोनों बच्चे कमरे से बाहर चले जाते हैं |
व्यक्ति – पत्नी के सामने बैठते हुए, कहता है भाग्यवान तुम मेरी परिस्थिति को नहीं समझ रही हो, इन बच्चों को पालने में कितना कष्ट होता है, यह तुम जानती हो | मैं नहीं चाहता कि हमारा यह बच्चा इस कष्ट भरे जीवन को जिए |
पत्नी – प्राणनाथ यह मेरा बच्चा है, मैं अपने बच्चे को कैसे मार सकती हूं | यदि जीवन में कितने भी कष्ट आए, मैं इसे जन्म जरूर दूंगी | मैं जानती हूं, हमारा जीवन कष्टों और दुखों से भरा है, पर इस बच्चे के लिए मैं सब कुछ सहन कर सकती हूं | (इसी को माँ का प्यार कहते हैं माँ का प्यार अगाध होता है हम उसे तुला में उसे तोल नही सकते|)
व्यक्ति – पत्नी से हार कर, ठीक है जैसा तुम्हें अच्छा लगे, पर जब तुम इसे कष्ट और पीड़ा में देखोगी| तो तुम्हें ही अधिक पीड़ा पहुंचेगी इतना कहकर व्यक्ति बाहर चला जाता है|
महिला – अपने पति की बातों को मथते हुए, कहीं खो जाती है |
इसी प्रकार आठ महीने गुजर जाते हैं |
महिला नए आगंतुक की खुशियों में खोई हुई थी, और व्यक्ति नए आगंतुक की चिंता में खोया हुआ था | वह इसी उधेड़बुन में था, उसका पालन पोषण कैसे होगा |
वह दिन आ ही गया शुभ मुहूर्त में उस बच्चे का जन्म होता है, वैद्यमाता के हाथों ही उस बच्चे का आविर्भाव होता है, कुछ समय बाद वैद्यमाता उस बच्चे को व्यक्ति के हाथों में रखती है|
व्यक्ति – बच्चे से बातें करते हुए, की इस नाशवान दुनिया में तुम अपने जीवन पंखों को कैसे फैलाओगे कठिन पथ है इस जीवन का, दृढ पूर्वक कैसे चल पाओगे |
बच्चा – अबोध है, पिता क्या बोल रहे हैं | उन बातों का उसे ज्ञान नहीं, पर एक छोटी सी हंसी अपने पिता को भेंट करता है |
व्यक्ति – उसकी छोटी सी हंसी देखकर उसके मन में अगाध प्रेम छलकने लगता है, वह प्रतिज्ञा करता है, की किसी भी प्रकार से मैं इसका पालन पोषण करूंगा, यही मेरा सपनों का संसार है |
बच्चे की हसी ने उस किसान के मन को परिवर्तित कर दिया |
इस संसार में सभी का अधिकार है जन्म लेने का और अपने जीवन को जीने का, हम कौन होते हैं किसी को जन्म से पहले ही मारने वाले यदि हमें भी हमारे माता पिता ने मार दिया होता तो इतनी सुंदर सृष्टि को निहारने का मौका कभी भी प्राप्त नहीं हो पाता |
परिचय :- भुवनेश नौडियाल
पिता : स्व. श्री जवाहर नौडियाल
माता : मधु देवी
निवासी : पालसैण, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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