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मतलब का ही रिश्ता है

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है।
रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है।

घटना दुर्घटना में ईश्वर खाता बही में रहमत भी है
कृपा से बचने पर कुछ बैरी जन की जहमत भी है
मृत्यु अरमान जलन सोच, तन की हालत खस्ता है
रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है।
सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है।

सहोदर भाई से सच्चे नाते भी कटुता से प्रेरित होते
दोषयुक्त जहाज से चूहे सबसे पहले भाग खड़े होते
अपनों के कटु निर्णय तो, स्वाभिमान को डसता है।
रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है।
सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है।

अति मजबूरी में धन सहयोग मांग का जब प्रस्ताव
भरोसा हीन जानकर लिखित दस्तावेज रूपी नाव
निज सोना गिरवी रखकर वही खुशी से हंसता है।
रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है।
सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है।

दायित्व वहन में सहनशीलता कहां तलक पहुंचाती
कर्म प्रेम और मजबूरी में कितने पापड़ बिलवाती
मारुति बेचकर फिएट खरीद के तानों में फंसता है
रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है।
सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है।

कैसा चाचा भाई घर पहुंचते ही शव दाह का हिसाब
चिकित्सालय में पखवाड़े भर में अनुपस्थित जनाब
मृत्योपरांत मिनटों में पास पहुंचने का पाया रस्ता है
रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है।
सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है।

आग लगी उनके उद्योग, घर जलाने को थे खड़े कभी
असहयोग प्रवृति बोले, हमारी कोई फैक्ट्री नहीं लगी
उद्योग की तालाबंदी मंशा सांठगांठ उड़नदस्ता है।
रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है।
सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है।

जलन के मारे मोटी दीवार बनाकर रहते दूर खड़े
पिता तेरहवीं में दहाई रुपए की खातिर रहे अड़े
दूसरों की प्रगति खुशी विरुद्ध बांधे बोरिया बस्ता है।
रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है।
सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है।

कई धोखे खाकर भी रिश्तों को जीवित रखा ‘विजय’
अंतिम संस्कार किया बिना दस मिनट इंतजार निर्भय
आते ही चोट कुतर्की पुण्य कमाते खाकर पिस्ता है।
रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है।
सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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